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लेदर उद्योग पर नोटबंदी की मार, 75 फीसदी कामगार हुए बेरोजगार : एसोचैम

नोटबंदी की वजह से लेदर उद्योग पर सख्त मार पड़ रही है। लेदर की चीजों के उत्पादन में 60% की गिरावट आने की वजह से करीब 75 फीसदी कामगार बेरोजगार हो गए हैं।

Manish Mishra
Published on: December 19, 2016 14:38 IST
लेदर उद्योग पर नोटबंदी की मार, 75 फीसदी कामगार हुए बेरोजगार : एसोचैम- India TV Paisa
लेदर उद्योग पर नोटबंदी की मार, 75 फीसदी कामगार हुए बेरोजगार : एसोचैम

लखनउ। नोटबंदी की वजह से भारत के लेदर उद्योग पर सख्त मार पड़ रही है। देश में लेदर निर्मित चीजों के उत्पादन में 60 प्रतिशत की गिरावट आने की वजह से करीब 75 फीसदी कामगार बेरोजगार हो गए हैं।

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लेदर उद्योग को नहीं मिल पा रही खाल

  • उद्योग मंडल एसोचैम के एक ताजा अध्ययन के मुताबिक नोटबंदी के बाद नकद लेन-देन में परेशानी की वजह से लेदर उद्योग के लिये जानवरों की खालें नहीं मिल पा रही हैं।
  • देश के प्रमुख लेदर क्लस्टरों आगरा, कानपुर और कोलकाता में नोटबंदी के कारण खालों की उपलब्धता में 75 प्रतिशत तक गिरावट आई है।
  • वहीं चेन्नई के लेदर कारखानों में यह गिरावट करीब 60 प्रतिशत की है।
  • अध्ययन के अनुसार नकदी में भुगतान नहीं होने की वजह से कसाई लेदर उद्योगों को जानवरों की खालें नहीं दे रहे हैं।
  • इसके अलावा लेदर उद्योग इकाइयां वाहन चालकों को नकदी नहीं दे पाने के कारण खालों को अपने पास नहीं मंगवा पा रही हैं।
  • साथ ही नोटबंदी के कारण लेदर कारखानों का ब्वायलर चलाने में इस्तेमाल होने वाले कोयले की आपूर्ति में आयी गिरावट ने भी इस उद्योग के लिये मुश्किलें बढ़ा दी हैं।

एसोचैम का यह अध्ययन पिछले करीब 15 दिनों के दौरान आगरा, चेन्नई, कानपुर और कोलकाता के प्रमुख लेदर क्लस्टरों में लगभग 100 लेदर कारखानों के प्रतिनिधियों से बातचीत पर आधारित है।

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उत्‍पादन के मोर्चे पर भी हैं चुनौतियां

  • अध्ययन में यह पाया गया है कि इन प्रमुख केंद्रों में लेदर उद्योग को उत्पादन के मोर्चे पर भी कड़ी चुनौतियों और समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
  • कुल उत्तरदाताओं में से 85 प्रतिशत ने कहा कि नोटबंदी की वजह से उनकी चमड़ा फैक्ट्रियों में उत्पादन 60 प्रतिशत तक गिर चुका है।
  • और मजदूरी ना मिल पाने की वजह से लगभग 75 प्रतिशत कामगार बेरोजगार हो गये हैं।
  • आगरा, कानपुर, चेन्नई और कोलकाता के लेदर उद्योग क्लस्टरों के अनेक प्रतिनिधियों का कहना है कि मौजूदा सूरतेहाल के मद्देनजर वे नए आर्डर भी नहीं ले पा रहे हैं।
  • क्योंकि वे जानते हैं कि समय से तैयार माल की आपूर्ति नहीं हो सकेगी।
  • उनका मानना है कि नोटबंदी से हो रहे इस नुकसान से उबरने में इस उद्योग को 9 से 12 महीने लग सकते हैं।

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