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देश को कम ब्याज दरों की दिशा में बढ़ना चाहिए: जेटली

अरूण जेटली ने लघु बचत योजनाओं पर ब्याज दरों में कटौती के निर्णय का बचाव किया है। उन्होंने कहा कि प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए कम दरों की दिशा में बढ़ना है।

Surbhi Jain
Updated on: March 21, 2016 16:48 IST
देश को कम ब्याज दरों की दिशा में बढ़ना चाहिए, जीएसटी विधेयक पारित होने की उम्मीद: जेटली- India TV Paisa
देश को कम ब्याज दरों की दिशा में बढ़ना चाहिए, जीएसटी विधेयक पारित होने की उम्मीद: जेटली

नई दिल्ली। वित्त मंत्री अरूण जेटली ने लघु बचत योजनाओं पर ब्याज दरों में कटौती के निर्णय का बचाव किया है। उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था को सुस्त होने के बजाए इसे ज्यादा प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए देश को कम ब्याज दरों की दिशा में बढ़ना है। लोकप्रिय मियादी जमा योजनाओं ब्याज में कटौती के लिए सरकार की आलोचना हो रही है। जेटली ने बजट सत्र के दूसरे चरण में दिवालिया विधेयक और जीएसटी विधेयक के पारित होने की भी उम्मीद जताई है। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि जीएसटी विधेयक को लेकर मतभेद कम हुए हैं और वह संसदीय कार्य मंत्री वेंकैया नायडू के साथ मिलकर कांग्रेस को राजी करने के लिए और प्रयास करेंगे।

भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जेटली ने कहा कि लघु बचत योजनाओं पर ब्याज दर का निर्धारण फार्मूला आधारित है और सरकार बाजार निर्धारित दर से ऊंचा ब्याज देने के लिए इन योजनाओं पर अपनी ओर से सब्सिडी देती है। पीपीएफ और वरिष्ठ नागरिक बचत योजनाओं समेत अन्य पर ब्याज दर में कमी को लेकर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की आलोचना को खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि संप्रग सरकार ने भी यही फार्मूला अपनाया था लेकिन अर्थव्यवस्था की सुस्ती के कारण उनके कार्यकाल में दरें अधिक थी।

वित्त मंत्री ने कहा, फार्मूला लंबे समय से है, हमने इसे नहीं बनाया। बाजार ब्याज दर निर्धारित करता है और सरकार बचत योजनाओं समेत अपने प्रतिभूतियों पर उससे अधिक ब्याज देने को लेकर सब्सिडी देती है। हम इसे पीपीएफ में देते हैं, हम वरिष्ठ नागरिक योजनाओं में थोड़ा अधिक देते हैं। यह फार्मूला आधारित है, यह बाजार से जुड़ा है। अरूण जेटली ने कहा, पूर्व में ब्याज दरें काफी बढ़ी थी। लेकिन वे अब नीचे आ गयी हैं। आज जिस रूप से अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही है, हमारे समक्ष ऐसी स्थिति नहीं हो सकती है जहां कर्ज पर ब्याज दरें कम हो रही हों पर जमा दरें ऊंची बनी हों। ये दोनों परस्पर जुड़ी हुई हैं। अर्थव्यवस्था में नरमी के बजाए उसे अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने के लिये देश को दोनों मामलों में कम ब्याज दर की दिशा में आगे बढ़ना है।

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