नई दिल्ली। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने Air India के निजीकरण की वकालत की। उन्होंने कहा कि एयरलाइंस की बाजार हिस्सेदारी मात्र 14 फीसदी है, ऐसे में करदाताओं के 55,000 से 60,000 करोड़ रुपए का उपयोग कितना जायज है। उन्होंने कहा कि सरकार को 15 साल पहले एयर इंडिया से बाहर हो जाना चाहिए था। वित्त मंत्री ने कहा कि वह नीति आयोग के कर्ज में डूबी एयरलाइंस के निजीकरण के विचार से सहमत हैं लेकिन इस मुद्दे पर सरकार निर्णय करेगी। यह भी पढ़े: एयर इंडिया बेचेगी अपने सात जमीन के टुकड़े, 80 करोड़ रुपए जुटाने की है योजना
वित्त मंत्री अरुण जेटली का कहना है कि
यदि उनकी पसंद पूछी जाए तो वह एयर इंडिया को पूरी तरह बेचने के पक्ष में हैं। मैं पहले ही बता चुका हूं कि एयर इंडिया का निजीकरण क्यों किया जाना चाहिए। यदि आप बड़ी राशि खर्च करने जा रहे हैं तो पब्लिक का पैसा पहले ही 55,000 करोड़ रुपए तक फंस चुका है। क्या यह रकम स्वास्थ्य पर खर्च होनी चाहिए या फिर इस राशि से सिंचाई की व्यवस्था दुरुस्त होनी चाहिए? हमें सोचना होगा कि क्या इस रकम को हमें सरकारी एयरलाइंस चलाने पर खर्च करना चाहिए, जबकि उड्डयन सेक्टर में निजी एयरलाइंस कंपनियों को उतारने की नीति खासी सफल रही है।
देश में बेहतर हुए एयरलाइंस सेक्टर के हालात
जेटली ने कहा कि नागर विमानन क्षेत्र भारत में सफलता की एक नयी कहानी बनता जा रहा है, निजी क्षेत्र की कई कंपनियां काफी कुशलता से एयरलाइंस चला रही हैं। यह भी पढ़े: एयर इंडिया के प्राइवेटाइजेशन पर मंत्रिमंडल जल्द ले सकता है निर्णय, काफी खराब है वित्तीय स्थिति
सिर्फ 14 फीसदी है Air India का मार्केट शेयर
जेटली ने कहा कि घरेलू उड्डयन सेक्टर में पहले ही 86 फीसदी यात्री प्राइवेट एयरलाइंस के जरिए सफर कर रहे हैं। यह आंकड़ा 86 फीसदी हो या फिर 100 फीसदी , इससे बहुत फर्क नहीं पड़ता। एयर इंडिया आगे भी नेशनल कैरियर रह सकती है और इसके प्रबंधन के लिए कोई और कीमत चुका सकता है। यह भी पढ़े: Air India-Indian Airlines के सौदों की होगी CBI जांच, UPA के फैसलों से हुआ हजारों करोड़ रुपए का नुकसान
एयर इंडिया पर 60 हजार करोड़ रुपए का कर्ज!
उन्होंने सीएनबीसी टीवी 18 से कहा, इसीलिए क्या यह न्यायोचित है कि सरकार बाजार में मात्र 14 प्रतिशत हिस्सेदारी रखे और फिर इस पूरे काम में करदाताओं का 50,000 से 60,000 करोड़ रुपए डालना पड़े। एयर इंडिया के उपर 50,000 करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज है। इसका मुख्य कारण उच्च रखरखाव लागत और पट्टा किराया है। वित्त वर्ष 2015-16 को छोड़कर कंपनी को शायद ही कभी मुनाफा हुआ। यह भी पढ़े: अप्रैल में घरेलू हवाई यात्रियों की संख्या 15 फीसदी बढ़ी, इंडिगो बनी लोगों की पहली पसंद