नई दिल्ली। दुनिया की बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों को अब भारत में कारोबार करने के लिए आधार से जुड़ना होगा। सरकार जल्द इस पर फैसला ले सकती है। माना जा रहा है कि सरकार देश में पूरी तरह से डिजिटाइजेशन लाना चाहती है। इसके लिए खासकर Google और Apple की टेक्नोलॉजी की जरूरत होगी। सरकार ने Apple ,Google सहित सभी टेक्नोलॉजी कंपनियों से सरकार ने इस बारे में बातचीत शुरू कर दी है। सरकार का मकसद इसके जरिए स्मार्टफोन से होने वाले फाइनेंश्यिल सर्विसेज को ट्रैक करने का है।
इन कंपनियों के साथ हुई बातचीत
कुछ दिनों पहले सरकार ने एप्पल, माइक्रोसॉफ्ट, सैमसंग और गूगल के अधिकारियों को मीटिंग में बुलाकर के स्मार्टफोन को आधार से रजिस्टर्ड करने के लिए कहा था। इन कंपनियों के अधिकारियों ने हालांकि सरकार को किसी तरह का कोई आश्वासन नहीं दिया। यूनिक आईडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया के प्रमुख अजय भूषण पांडेय ने कहा कि हमने इन कंपनियों को सरकार की मंशा जाहिर कर दी है।
आपको होंगे ये फायदे
स्मार्टफोन बनाने वाली कंपनियां अगर अपने फोन डिवाइसेस को आधार से लिंक करती हैं तो इनके जरिए होने वाले सभी तरह के फाइनेंश्यिल ट्रांजैक्शन जैसे कि बिल पेमेंट, रेलवे टिकट खरीदना, बैंक में पैसा जमा करना या निकालना और आसान हो जाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि फोन के पहले से आधार रजिस्टर्ड होने से इन सर्विसेज के लिए बार-बार रजिस्ट्रेशन नहीं कराना होगा। इसके साथ ही बैंक अकाउंट खोलना और गैस सब्सिडी को सीधे अकाउंट में ट्रांसफर कराना भी आसान हो जाएगा।
घरेलू कंपनियों को मिलेगा फायदा
सरकार की इस मंशा से भारतीय ऑनलाइन रिटेल और ई-वॉलेट कंपनियों को सबसे ज्यादा फायदा होने की उम्मीद है। जिन कंपनियों को इससे सबसे ज्यादा फायदा मिलेगा उनमें फिल्पकार्ट, स्नैपडील और पेटीएम शामिल हैं। इन कंपनियों का डिजिटल पेमेंट पहले से ही आधार से लिंक है। अभी केवल सैमसंग एकमात्र ऐसी कंपनी है जिसने मार्केट में अपना आधार बेस्ड टैबलेट बना रखा है जो कि मार्केट में बहुत अच्छे से बिक रहा है।
देश में डिजिटाइजेश के लिए जरूरी है आधार से लिंक करना
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक सरकार का प्रयास है कि दिग्गज तकनीकी कंपनियां आधार का इस्तेमाल करें। फिलहाल करोड़ों भारतीयों को आधार कार्ड के जरिए बैंकिंग समेत तमाम सरकारी और गैर-सरकारी योजनाओं का लाभ मिल रहा है। इस कोशिश से जुड़े बिना इन कंपनियों के लिए भारत के तेजी से बढ़ते बाजार में अपनी पैठ बनाना मुश्किल होगा। लेकिन ऐपल और गूगल जैसी कंपनियां अपने फोन और ऑपरेटिंग सिस्टम में इंडियन रजिस्ट्रेशन, एन्क्रिप्शन यानी कोडिंग और सुरक्षा तकनीक के इस्तेमाल से बचने की कोशिश में हैं।
कंपनियां नहीं है इसके लिए तैयार
बॉस्टन कंसल्टिंग ग्रुप ऑफ इन इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर नीरज अग्रवाल ने कहा, ‘टेक्नॉलजी कंपनीज की ओर से कई तरह से इससे बचने की कोशिश की जा सकती है।’ कुछ सप्ताह पहले ही सरकारी अधिकारियों ने ऐपल इंक, माइक्रोसॉफ्ट, सैमसंग और गूगल की पैरंट कंपनी अल्फाबेट इंक के एग्जिक्यूटिव्स को बुलाकर मीटिंग की थी। इस दौरान अधिकारियों ने कंपनियों के प्रतिनिधियों से उनकी टेक्नॉलजी में आधार के कोडिंग को शामिल करने को लेकर चर्चा की।
हाल में हुई थी चर्चा
यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया के संचालक अजय भूषण पांडे ने कहा कि इंडस्ट्री के लोगों ने विनम्रता से पूरी बात को सुना, लेकिन किसी तरह का वादा नहीं किया। पांडे ने कहा कि हमने कंपनियों के एग्जिक्यूटिव्स से कहा, ‘अपने मुख्यालय जाइए और इस मामले पर काम कीजिए। ताकि हमारे पास आधार रजिस्टर्ड डिवाइसेज हो सकें।’
भारत का बॉयोमीट्रिक आइडेंटिटी प्रोग्राम एक नई शुरुआत है। इससे पहले एफबीआई और यूएस विजिट वीजा प्रोग्राम की ओर से ऐसी तकनीक का इस्तमाल किया जा रहा है ताकि अपराधियों और विदेशी संदिग्धों को ट्रैक किया जा सके। फिलहाल भारत में करीब 83 फीसदी आबादी के पास आधार कार्ड है।
कई मुद्दों पर सरकार और कंपनियों की बीच थी टकराव की स्थिति
सरकार और इन कंपनियों के बीच कई मुद्दों को लेकर टकराव की स्थिति भी बन रही है। इसी साल सरकार ने फेसबुक फ्री वेब सर्विस को बैन कर दिया था, इसके अलावा ऐपल को भी लोकल सोर्सिंग रूल्स से छूट देने और अपने स्टोर खोलने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। अब भारत सरकार की ओर से कंपनियों पर सरकारी तकनीक का इस्तेमाल करने को लेकर दबाव बढ़ाया जा सकता है।