नई दिल्ली। फोरेंसिक ऑडिटर्स (खातों में आपराधिक हेराफेरी की जांच करने वाले ऑडिटर्स) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि आम्रपाली के दस्तावेजों से पता चलता है कि समूह की एक कंपनी द्वारा घर खरीदारों से प्राप्त धन में से करीब 100 करोड़ रुपए की राशि गौरीसूत इंफ्रास्ट्रक्चर्स प्राइवेट लिमिटेड को हेराफेरी से पहुंचाई गई। ऑडिटर्स ने यह भी बताया कि आम्रपाली ने 20 से अधिक मुखौटा कंपनियों के माध्यम से खरीदारों के धन के साथ हेरा-फेरी की है। वहीं आम्रपाली ग्रुप के मुख्य वित्त अधिकारी चंदर वाधवा ने कुछ भी याद न होने की बात कह जांच में सहयोग करने में असमर्थता जताई है।
फोरेंसिक ऑडिटर्स ने यह भी कहा कि कानून के तहत नियुक्त कंपनी के ऑडिटर्स ने भी कई गलतियां की और वे अपने कर्तव्यों का पालन करने में पूरी तरह विफल रहे।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जमीन/ मकान का कारोबार करने वाले आम्रपाली समूह ने घर खरीदने वाले ग्राहकों से जुटे पैसे को हेराफेरी कर दूसरी कंपनियों में पहुंचा दिया और इस बड़ी धोखाधड़ी में शामिल बड़े गिरोह को सामने लाना ही होगा। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति यूयू ललित की पीठ ने कहा कि यह एक बड़ा गिरोह है, जिसका पर्दाफाश जरूरी है।
पीठ ने कहा, समूह द्वारा इधर-उधर किए गए धन को वापस निकालना होगा। इसी के लिए यह फॉरेंसिक ऑडिट है और यह इसलिए भी है कि हेराफेरी के पीछे जिम्मेदार लोगों को पकड़ा जाए और जरूरी हो तो उन्हें जेल भेजा जाए।
मुखौटा कंपनियों के जरिये हुए हेरा-फेरी
फॉरेंसिक ऑडिटर्स रवि भाटिया और पवन कुमार अग्रवाल ने बताया कि उन्हें समूह की कुछ कंपनियों द्वारा घर खरीदारों के पैसे का हेरफेर करने की जानकारी मिली है और इसके लिए कुछ मुखौटा कंपनियां भी बनाई गई थीं। ऑडिटर्स ने पीठ को बताया कि गौरीसूत के निदेशक आशीष जैन और विवेक मित्तल समूह के विधायी ऑडिटरों के रिश्तेदार बताए जाते हैं।
सीएफओ की याददाश्त हुई कमजोर
ऑडिटर्स ने पीठ को यह भी बताया कि आम्रपाली समूह के मुख्य वित्तीय अधिकारी चंदर वाधवा मामले में सहयोग नहीं कर रहे हैं। ऑडिटर्स ने कहा कि वाधवा को यह याद है कि उनकी शादी कब हुई। उसे अन्य निजी बातें भी याद है। बस यह याद नहीं है कि वह आम्रपाली समूह से कब जुड़ा था।