वाशिंगटन। 7.5 फीसदी की विकास दर के साथ भारत सरकार भले ही अपनी ताल ठोक रही है, लेकिन अमेरिका इन आंकड़ों को मनगढ़ंत मान रहा है। अमेरिका ने कहा कि भारत की वृद्धि दर को बढ़ा-चढ़ाकर बताई गई हो सकती है। साथ ही कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार आर्थिक सुधार के संबंध में अपने वादों को पूरा करने की दिशा में धीमी रही है हालांकि उसने नौकरशाही और एफडीआई की रोक कम करने की प्रशंसा की है।
विदेश विभाग के आर्थिक एवं कारोबार ब्यूरो की इस रिपोर्ट में कहा गया, स्पष्ट रूप से भारत विश्व की सबसे अधिक तेजी से वृद्धि दर्ज करती अर्थव्यवस्था है लेकिन निवेशकों के रुझान में नरमी से संकेत मिलता है कि करीब 7.5 प्रतिशत की वृद्धि दर वास्तविकता से अधिक बताई गई हो सकती है।
विभिन्न किस्म के आर्थिक सुधार और विशेष तौर पर नौकरशाही के फैसलों को व्यवस्थित करने और कुछ क्षेत्रों में एफडीआई सीमा बढ़ाने की प्रशंसा करते हुए अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने रिपोर्ट में कहा कि प्रस्तावित आर्थिक सुधार के संबंध में मोदी सरकार की प्रगति धीमी रही है जो उसके वादे के अनुरूप हो। रिपोर्ट में कहा गया कि कई प्रस्तावित सुधारों को संसद में पारित होने के लिए संघर्ष करना पड़ा। इसमें कहा गया कि इसके कारण भाजपा नीत सरकार के समर्थन में आगे आए कई निवेश पीछे हट रहे हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक सरकार संसद में भूमि अधिग्रहण विधेयक पर पर्याप्त समर्थन हासिल करने में नाकाम रही और वस्तु एवं सेवा कर के ब्योरों के संबंध में विपक्षी दलों के साथ अभी भी विचार-विमर्श कर रही है। यदि इसे कमजोर न बना दिया गया तो यह भारत के पेचीदे कर ढांचे का व्यवस्थित कर सकता है और सकल घरेलू उत्पाद को तुरंत प्रोत्साहन प्रदान कर सकता है।
भारत की आर्थिक वृद्धि दर वित्त वर्ष 2016-17 में 7.4 फीसदी रहने का अनुमान: HSBC
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