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2जी घोटाला: 1.76 लाख करोड़ रुपए के घोटाले में सभी आरोपी बरी

CBI कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए पुर्व टेलिकॉम मंत्री ए राजा सहित डीएमके नेता कनिमोझी को इस घोटाले के आरोपों से मुक्त कर दिया है।

Reported by: Manoj Kumar @kumarman145
Updated : December 21, 2017 11:08 IST
2G Scam
Photo:PTI All accused in 2G Scam aquitted

नई दिल्ली। देश की राजनीति को हिलाने वाले 1.76 लाख करोड़ रुपए के 2जी घोटाले सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया है। CBI कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए पूर्व टेलिकॉम मंत्री ए राजा सहित डीएमके नेता कनिमोझी को इस घोटाले के आरोपों से मुक्त कर दिया है। जिन 16 लोगों पर इस घोटाले का आरोप था उनमें पूर्व टेलिकॉम मंत्री ए राजा, डीएमके नेता कनिमोझी, ए राजा के पीए आक के चंदोलिया, पूर्व टेलिकॉम सचिव सिद्धार्थ बेहुरा, रिलायंस टेलिकॉम के 3 एग्जिक्यूटिव, स्वान टेलिकॉम के साहिद बलवा, फिल्म प्रोड्यूसर करीम मोरानी, यूनिटेक के संजय चंद्रा और क्लेगनार टीवी के शरद कुमार शामिल हैं। इनके अलावा इस घोटाले में रिलायंस कम्युनिकेशन, स्वान टेलिकॉम और युनिटेक का नाम भी शामिल था।

2जी घोटाले में क्या हुआ?

  • मई 2007 में ए. राजा यूपीए सरकार में टेलीकॉम मिनिस्टर बने
  • अगस्त 2007 में 2 जी स्पैक्ट्रम के लाइसेंस देने शुरू किए
  • 2 नवंबर 2007 को तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह ने ए राजा को चिट्ठी लिखी
  • मनमोहन सिंह ने आवंटन में पारदर्शिता बरतने और फीस रिव्यू करने के लिए कहा
  • 22 नवंबर 2007 को वित्त मंत्रालय ने भी लाइसेंस प्रक्रिया पर सवाल उठाए
  • 10 जनवरी, 2008 को 'पहले आओ- पहले पाओ' की नीति अपनाई
  • लाइसेंस के लिए कट-ऑफ की तारीख 25 सितंबर तक के लिए बढ़ा दी गई
  • 4 मई, 2009 को एनजीओ ने सीवीसी से अनियमितता की शिकायत की
  • 21 अक्टूबर, 2009 को CBI ने टेलीकॉम विभाग के अज्ञात अफसरों पर FIR किया
  • 10 नवंबर, 2010 को CAG ने कहा 1.76 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ
  • नवंबर 2010 में ए राजा ने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया
  • 17 फरवरी, 2011 को डी राजा को गिरफ्तार किया गया
  • 14 मार्च, 2011 को दिल्ली हाई कोर्ट ने विशेष अदालत का गठन किया
  • 2 अप्रैल, 2011 को सीबीआई ने 2G मामले में चार्जशीट दाखिल की
  • 25 अप्रैल, 2011 को CBI ने दूसरी चार्जशीट दाखिल की
  • CBI की दूसरी चार्जशीट में डीएमके नेता कनीमोझी का भी नाम शामिल था
  • 11 नवंबर, 2011 को विशेष अदालत में इस मामले की सुनवाई शुरू हुई
  • 12 दिसंबर, 2011 को सीबीआई ने तीसरी चार्जशीट दाखिल की.
  • 2 फरवरी, 2012 को सुप्रीम कोर्ट ने 2जी लाइसेंस रद्द कर दिए
  • 19 अप्रैल, 2017 को इस केस की सुनवाई खत्म हुई

आरोपियों के वकील अशोक अग्रवाल ने कहा, “कोर्ट ने बिना किसी छुट्टी के हर रोज़ सुनवाई की उसके बाद भी इसमें 6 साल लग गये और अब फैसला आने वाला है। हम इंसाफ की उम्मीद करते हैं। हमने बहुत मेहनत की है। पहले दिन से ही सीबीआई के पास कोई केस नहीं है और वो सीएजी की रिपोर्ट के आधार पर लोगों को सज़ा दिलवाना चाहते हैं जो कुछ और बात कहती है। क्रिमिनल कानून की ज़रूरतें कुछ और हैं। अब देखिये क्या होता है लेकिन हम इंसाफ की उम्मीद करते हैं।“

कितना बड़ा है टूजी घोटाला?

पूरा देश उस वक्त चौंक गया जब सीएजी ने बताया कि टूजी घोटाला एक लाख 76 हज़ार करोड़ का है। शुरुआत में तो लोग अंदाज़ा भी नहीं लगा पाए कि आखिर ये रकम होती कितनी है। आज भी इसे लिखना और समझना मुश्किल है। जिस घोटाले से तत्कालीन मनमोहन सरकार हिल गई, जिस घोटाले के लिए कई दिनों तक संसद ठप रही, जिस घोटाले के लिये यूपीए सरकार को जेपीसी बनानी पड़ गई वो घोटाला अगर देश के काम आता तो देश की सूरत बदल गई होती।

-साल 2008, जिस साल ये घोटाला हुआ उस साल देश का रक्षा बजट 1 लाख 5 हज़ार 600 करोड़ रुपये का था, यानी घोटाले की रकम इस रक्षा बजट से करीब डेढ़गुनी थी

-2008 में देश का स्वास्थ्य बजट मात्र 16,534 करोड़ रुपये था, यानी घोटाले की रकम इससे दस गुना ज्यादा थी

-इसी तरह 2008 में शिक्षा का बजट 34,400 करोड़ रुपये था...यानी 2जी घोटाले की रकम से 6 सालों तक देश की शिक्षा का खर्चा चल सकता था और उसी साल 2008 में गावों के विकास के लिए 14,000 करोड का बजट रखा गया था

-अगर 2जी घोटाले की रकम का इस्तेमाल गांवों के विकास के लिए हुआ होता तो हिन्दुस्तान के गांवो की सूरत बदल जाती

देश ने इससे पहले इतना बड़ा घोटाला नहीं देखा था। 1 लाख 76 हज़ार करोड़ का ज़िक्र आने पर अर्थशास्त्रियों तक के कान खड़े हो गये। देश में ये भी पहली बार हुआ जब कोई कैबिनेट मंत्री घोटाले के लिए जेल गया। सीबीआई ने 2009 से केस की जांच शुरू की और नवंबर 2010 में ए राजा को इस्तीफा देना पड़ा और चार महीने बाद ही फरवरी 2011 में उनको गिरफ्तार कर लिया गया। इस मामले में कनिमोझी को भी जेल हुई। ए राजा और कनिमोझी समेत ज्यादातर आरोपी फिलहाल ज़मानत पर जेल से बाहर हैं जिनकी निगाहें अदालत के फैसले पर टिकी हैं।

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