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अडानी समूह का ऋण देश के किसानों के ऋण के बराबर है: जदयू

जनता दल (युनाइटेड) के नेता पवन कुमार वर्मा ने गुरुवार को राज्यसभा में कॉरपोरेट ऋण का मामला उठाते हुए कहा कि अडानी समूह पर कुल 72,000 करोड़ रुपये बकाया है।

Abhishek Shrivastava
Published : May 05, 2016 19:53 IST
अडानी समूह पर  है 72,000 करोड़ रुपए का कर्ज, यह देश के किसानों के कुल ऋण के है बराबर: जदयू
अडानी समूह पर है 72,000 करोड़ रुपए का कर्ज, यह देश के किसानों के कुल ऋण के है बराबर: जदयू

नई दिल्ली| जनता दल (युनाइटेड) के नेता पवन कुमार वर्मा ने गुरुवार को राज्यसभा में कॉरपोरेट ऋण का मामला उठाते हुए कहा कि अडानी समूह पर कुल 72,000 करोड़ रुपये बकाया है, जो भारत के किसानों के कुल कर्ज के बराबर है। वर्मा ने शून्यकाल के दौरान कहा कि  कंपनियों पर लगभग 5,00,000 करोड़ रुपए ऋण बकाया है और इसमें से 1.4 लाख करोड़ रुपए केवल पांच कंपनियों पर बकाया है, जिसमें लैंको, जीवीके, सुजलॉन एनर्जी, हिन्दुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी और अडानी समूह की अडानी पावर समेत कुछ कंपनियां शामिल हैं।

वर्मा ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि इस समूह द्वारा लिया गया दीर्घकालिक और अल्पकालिक कर्ज आज लगभग 72,000 करोड़ रुपए के बराबर है। कल ही यहां उल्लेख किया गया था कि किसानों पर कुल 72,000 करोड़ रुपए का कर्ज बकाया है। उन्होंने कहा, “अडानी समूह पर बैंकों का 72,000 करोड़ रुपए बकाया है। इससे फर्क नहीं पड़ता कि वे (अडानी) या समूह इस कर्ज को लौटाने की क्षमता रखते हैं। पिछले दो-तीन सालों में कंपनी की संपत्ति में 85 फीसदी का इजाफा हुआ है। लेकिन आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि इस दौरान कंपनी की कर्ज लौटाने की क्षमता नाटकीय रूप से कम हो गई है।”

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वर्मा ने इसी प्रकार से विजय माल्या के मामले के बारे में कहा, “माल्या के संकट को जानने-समझने के बावजूद इस सरकार के सत्ता में आने के बाद भारतीय स्टेट बैंक ने माल्या को एक अरब डॉलर का कर्ज दिया।” वर्मा ने कहा, “मैं नहीं जानता कि उनके साथ इस सरकार का क्या रिश्ता है। लेकिन प्रधानमंत्री जहां भी जाते हैं, अडानी वहां दिखते हैं। गौर करने वाली बात यह है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक उन लोगों को ऋण देने को उत्सुक होते हैं जो वापस नहीं चुकाते।”

जदयू सदस्य ने इस संबंध में सरकार से जवाब देने को कहा। वर्मा ने आगे कहा, “मैं सरकार से यह जवाब चाहता हूं कि क्या वे इसके बारे में जानते हैं या नहीं। इस कंपनी के पक्ष में सरकार ने अविश्वसीन रूप से काम किया है। गुजरात में उनके विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) को उच्च न्यायालय के प्रतिकूल फैसले के बावजूद मंजूरी दे दी गई, जबकि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार ने इसे मंजूरी नहीं दी थी।”

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