नई दिल्ली। सरकारी कंपनी कोल इंडिया की 54 खनन परियोजनाएं देरी से चल रही हैं। इसका मुख्य कारण पर्यावरण मंजूरियों में विलंब तथा पुनर्वास संबंधी मुद्दे हैं। कोल इंडिया 2023-24 तक सालाना एक अरब टन उत्पादन का स्तर हासिल करने का लक्ष्य बनाकर चल रही है, ऐसे में अगर परियोजनाओं में देरी जारी रही तो कंपनी की भविष्य की योजनाओं पर असर देखने को मिल सकती है। कंपनी ने एक हालिया रिपोर्ट में कहा, ‘‘20 करोड़ और उससे अधिक की लागत वाली 123 कोयला परियोजनाएं कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं, जिनमें से 69 परियोजनाएं निर्धारित समय पर हैं और 54 परियोजनाएं देरी से चल रही हैं।’’ कंपनी ने कहा कि इन परियोजनाओं के कार्यान्वयन में देरी के प्रमुख कारणों में वन मंजूरी (एफसी) प्राप्त करने में देरी और भूमि पर कब्जा, पुनर्वास और पुनर्वास से जुड़े मुद्दे शामिल हैं। कंपनी ने कहा कि उसके निदेशक मंडल ने 2019-20 के दौरान प्रति वर्ष 1320.4 लाख टन की कुल क्षमता वाली 18 खनन परियोजनाओं में 21,244.55 करोड़ रुपये के कुल निवेश को मंजूरी दी। वित्त वर्ष के दौरान 855.52 करोड़ रुपये की गैर-खनन परियोजनाओं को भी मंजूरी दी गयी।
हाल ही में जारी हुए नतीजों के मुताबिक कोल इंडिया का पहली तिमाही में मुनाफा 55 फीसदी गिरकर 2080 करोड़ रुपये के स्तर पर आ गया है। एक साल पहले कंपनी का मुनाफा 4630 करोड़ रुपये के स्तर पर था। कंपनी के मुताबिक तिमाही के दौरान कंपनी के कारोबार पर कोविड 19 का असर देखने को मिला है। लॉकडाउन के दौरान बिजली की मांग में तेज गिरावट देखने को मिली थी। इससे पावर सेक्टर से कोयले की मांग गिर गई थी। वहीं अन्य सेक्टर में कारोबारी गतिविधिय़ां बंद रहने से भी आय पर असर पड़ा। तिमाही के दौरान कंपनी की ऑपरेशन से आय 25.9 फीसदी की गिरावट के साथ 18487 करोड़ रुपये के स्तर पर आ गई। पिछले साल की इसी तिमाही में ये आंकड़ा 24,939 करोड़ रुपये का था।