नई दिल्ली। एक ओर जहां मोदी सरकार इंडिया को कैशलेस बनाने के लिए डिजिटल पेमेंट की ओर ले जाने के प्रयास में जुटी है, वहीं साइबरक्राइम का जाल दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। रूस की साइबर सुरक्षा कंपनी कास्पस्क्री लैब्स ने अपनी एक ताजा रिपोर्ट में खुलासा किया है कि वित्तीय साइबरक्राइम के आधे से ज्यादा पीड़ित साइबर अपराधियों के हाथों अपना धन गंवा बैठते हैं।
सरकार को सबसे पहले साइबर अपराधियों पर शिकंजा कंसने का तंत्र विकसित करना चाहिए और ये भरोसा दिलाना चाहिए कि डिजिटल लेनदेन एक दम सुरक्षित है। जब तक सरकार इस ओर अपना ध्यान नहीं देगी, तब तक ग्रामीण इलाकों में लोगों को डिजिटल भुगतान की ओर मोड़ पाना मुश्किल होगा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ ही लोग (52 प्रतिशत) बहुत कम हिस्सा वापस प्राप्त कर पाते हैं या उन्हें कुछ भी वापस नहीं मिलता है। उपभोक्ताओं के खिलाफ ऑनलाइन वित्तीय खतरा कई रूपों में और तरीकों से बढ़ता जा रहा है और धोखाधड़ी, पहचान चोरी और हैंकिंग के कारण सालाना अरबों रुपए लोग गंवा बैठते हैं।
- रूस की साइबर सिक्युरिटी फर्म ने बताया कि इनमें से कई मामले दर्ज भी नहीं हो पाते इसलिए वास्तव में आर्थिक चपत काफी अधिक होने की संभावना है।
- साइबर हमलों में इंटरनेट यूजर्स हरेक हमले में औसतन 476 डॉलर या 32,400 रुपए का नुकसान होता है।
कास्पस्क्री लैब के एंटी मालवेयर रिसर्च टीम के प्रमुख व्याचेस्लाव जाकोरजेवस्की ने कहा कि,
साइबर अपराधी लगातार उपभोक्ताओं का शोषण और धोखाधड़ी करने के नए रास्ते तलाशते रहते हैं और यही कारण है कि इंटरनेट यूजर्स के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे हमेशा सुरक्षा पर ध्यान दें।
- इंटरनेट यूजर्स में से अधिकांश का कहना है कि वे ऑनलाइन वित्तीय लेनदेन (81 फीसदी) करते हैं।
- करीब आधे लोगों का कहना है कि वे अपने डिवाइस में वित्तीय आंकड़े (44 फीसदी) भी रखते हैं।
- केवल 60 फीसदी इंटरनेट यूजर्स ही अपने सभी डिवाइसों को सुरक्षित रखने पर ध्यान देते हैं।