नई दिल्ली। देश का आम बजट भारत के लोकतंत्र का एक अहम हिस्सा है। देश की जनता द्वारा चुनी गई सरकार हर साल देश के आय व्यय के ब्यौरे के साथ अगले एक साल में विकास की रूपरेखा पेश करती है। बजट देश के संविधान का एक अहम हिस्सा है, लेकिन बजट के साथ कई परंपराएं भी जुड़ी होती हैं जिन्हें अक्सर हम नियम समझ लेते हैं। अधिकतर सरकारें इन्हीं परंपराओं का निर्वहन कर बजट पेश करती हैं, वहीं कुछ सरकार परंपराएं तोड़कर बजट की एक नई परंपरा की शुरुआत करती हैं। जैसे 2016 तक फरवरी के अंतिम कार्य दिवस को बजट पेश किया जाता था। लेकिन वित्तीय कामकाजों की सहूलियत को देखते हुए पिछले साल इसे बदलकर 1 फरवरी कर दिया गया। इस साल भी बजट 1 फरवरी को ही पेश होगा।
इन्हीं में से एक परंपरा बजट पेश करने के समय को लेकर भी थी, जो कि 2001 में तत्कालीन वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा ने खत्म की थी। Y2K यानि वर्ष 2000 तक देश का आम बजट शाम 5 बजट पेश होता था। यह भी एक बजट परंपरा थी, लेकिन इसके पीछे भी एक इतिहास और एक तात्कालीन जरूरत जुड़ी हुई थी। इस परंपरा के पन्ने भारतीय स्वतंत्रता से करीब 20 साल पुराने हैं। बात 1927 की है, उस समय अंग्रेज अधिकारी भी भारतीय संसदीय कार्यवाही में हिस्सा लेते थे।
दरअसल जब भारत में शाम के 5 बजते थे तो उस समय लंदन में सुबह के 11.30 बज रहे होते थे। लंदन के हाउस ऑफ लॉर्ड्स और हाउस ऑफ कॉमंस में बैठे सांसद भारत का बजट भाषण सुनते थे। आजादी के बाद भी यह नियम जारी रहा। वहीं लंदन स्टॉक एक्सचेंज भी उसी समय खुलता था ऐसे में भारत में कारोबार करने वाली कंपनियों के हित इस बजट से तय होते थे।
लेकिन औपनिवेशिक भारत की इस धुंध को देश में संविधान लागू होने के 50 साल बाद साफ किया गया। तत्कालीन एनडीए सरकार ने इस परंपरा को तोड़ा। उस समय के वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने सबसे पहले सुबह 11 बजे बजट पेश करना शुरू किया जो कि पूरी तरह से भारत के समयानुसार और भारत की परंपरा के अनुरूप था।