नई दिल्ली। कृषिगत आय पर जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल असर के प्रति आगाह करते हुए आर्थिक समीक्षा 2017-18 में कहा गया है कि इससे कृषिगत आय के मध्यम तौर पर 20-25 प्रतिशत तक घटने का जोखिम हो सकता है। समीक्षा में इससे बचने के लिए सिंचाई में नाटकीय सुधार, नयी प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल तथा बिजली व उर्वरक सब्सिडी को और बेहतर ढंग से लक्षित करने का सुझाव दिया गया है। इसके साथ ही सरकार को आमूल अनुवर्ती कार्रवाई का सुझाव दिया गया है ताकि कृषिगत दबाव पर ध्यान देने व किसानों की आय दोगुनी करने के दोहरे लक्ष्य को हासिल किया जा सके।
इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में ग्रामीण जनसंख्या का 58 फीसदी से अधिक कृषि पर निर्भर करती है।
चूंकि कृषि राज्य का विषय और खुला राजनीतिक आर्थिक सवाल है इसलिए समीक्षा में जीएसटी परिषद जैसे ही प्रणाली की वकालत की है ताकि कृषि क्षेत्र में और सुधार लाए जा सकें और किसानों की आय बढ़ाई जा सके। आर्थिक समीक्षा 2017-18 सोमवार को संसद में पेश की गई। इसमें कहा गया है जलवायु परिवर्तन जिसका असर भारतीय कृषि पर पहले ही नजर आ रहा है, से कृषि आय मध्यम स्तर पर 20- 25 प्रतिशत तक घट सकती है।
इसके अनुसार जलवायु परिवर्तन से सालाना कृषि आय में औसतन 15 से 18 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है जबकि असिंचित क्षेत्रों में यह गिरावट 20-25 प्रतिशत तक हो सकती है। समीक्षा के अनुसार मझौले किसान परिवार के लिए औसत कृषि आय 3600 रुपए सालाना से अधिक बैठती है।
समीक्षा में मोटे अनाज केंद्रित कृषि नीति की समीक्षा का आह्वान करते हुए कहा है कि जलवायु परिवर्तन के असर को कम से कम करने के लिए महत्वपूर्ण बदलावों की जरूरत है।
इसमें कहा गया है सिंचाई जल की कमी तथा भूमिगत जल स्तर में गिरावट के बीच भारत को सिंचित क्षेत्र का दायरा बढ़ाना होगा। इस समय लगभग 45 प्रतिशत कृषि भूमि सिंचित है। गंगा का मैदानी इलाका, गुजरात व मध्य प्रदेश के अनेक हिस्से अच्छी तरह से सिंचित हैं। वहीं कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान, छत्तीसगढ व झारखंड के अनेक इलाके अभी भी सिंचाई सुविधाओं से वंचित हैं और जलवायु परिवर्तन की चपेट में आ सकते हैं।
समीक्षा में फव्वारा व बूंद-बूंद सिंचाई जैसे प्रौद्योगिकियों क इस्तेमाल बढाने पर जोर दिया गया है। इसमें कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन से किसानों के लिए अनिश्चितता बढेगी इसलिए प्रभावी फसल बीमा की जरूरत है।