Friday, November 15, 2024
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सब्सिडी बंद होने से इलेक्ट्रिक स्कूटर कंपनियों की हुई 'बैटरी डिस्चार्ज', 7 EV निर्माताओं को लगी 9000 करोड़ की चपत

भारत में इलेक्ट्रिक स्कूटर का बाजार शुरू होने से पहले ही खत्म होता दिख रहा है। सब्सिडी के बलबूते बढ़ रही यह इंडस्ट्री बैसाखी छिनते ही बिखरने सी लगी है।

Written By: Sachin Chaturvedi @sachinbakul
Updated on: August 10, 2023 13:53 IST
electric Scooter- India TV Paisa
Photo:FILE electric Scooter

2022 में केंद्र और राज्य सरकारों की सब्सिडी के बलबूते फलफूल रही इलेक्ट्रिक स्कूटर की इंडस्ट्री के लिए 2023 का साल सपनों के टूटने का है। इस साल सरकार ने फेम सब्सिडी की राहत वापस ले ली है। जिसके चलते इस साल कंपनियों की बिक्री में जोरदार गिरावट देखने को मिली है। सब्सिडी बंद किए जाने के बाद बकाया भुगतान न होने और बाजार हिस्सेदारी में गिरावट के कारण सात इलेक्ट्रिक दोपहिया कंपनियों को कुल मिलाकर 9,000 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है। सरकार ने इन कंपनियों को उन्हें दी गई सब्सिडी वापस करने का निर्देश दिया है। 

बर्बाद होने की कगार पर इंडस्ट्री

सोसायटी ऑफ मैन्युफैक्चरर्स ऑफ इलेक्ट्रिक वेहिकल्स (एसएमई‍वी) के अनुसार, उसके चार्टर्ड अकाउंटेंट के ऑडिट से संकेत मिलता है कि प्रभावित कंपनियों को 9,000 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान होने का अनुमान है। एसएमईवी के ‘चीफ एवान्जलिस्ट’ संजय कौल ने कहा कि हो सकता है इनमें से कई कंपनियां कभी इससे उबर न पाएं। केंद्रीय मंत्री महेंद्र नाथ पांडे को लिखे पत्र में उन्होंने कहा कि ओईएम (मूल उपकरण निर्माता) रोज बढ़ते घाटे के कारण बर्बाद होने की स्थिति में पहुंच रहे हैं। कौल ने कहा कि पत्र में प्रस्ताव दिया गया कि यदि मंत्रालय का इरादा इन ओईएम को सजा देना था, लेकिन अब यह उन्हें व्यावहारिक रूप से खत्म कर रही है। यह सजा 22 महीने से अधिक समय से जारी है जो खुद में एक अपराध है। 

सरकार ने इन कंपनियों से वापस मांगी सब्सिडी

सरकार हीरो इलेक्ट्रिक, ओकिनावा ऑटोटेक, एम्पीयर ईवी, रिवोल्ट मोटर्स, बेनलिंग इंडिया, एमो मोबिलिटी और लोहिया ऑटो से सब्सिडी वापस मांगी है। भारी उद्योग मंत्रालय की जांच में इन कंपनियों के नियमों का उल्लंघन कर योजना के तहत राजकोषीय प्रोत्साहन का लाभ उठाने की बात सामने आई थी। योजना के नियमों के अनुसार, ‘मेड इन इंडिया’ (भारत निर्मित) घटकों का इस्तेमाल करके इलेक्ट्रिक वाहनों का उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहन की अनुमति दी गई थी, लेकिन जांच में पता चला कि इन सात कंपनियों ने कथित तौर पर आयातित घटकों का इस्तेमाल किया।

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