मुंबई। मुंबई और पुणे के बीच यात्रा 35 मिनटों में पूरा करने के सपने के साकार करने के लिए महाराष्ट्र सरकार ने वर्जिन हाइपरलूप वन-डीपी वर्ल्ड कंसोर्टियम को पुणे-मुंबई हाइपरलूप परियोजना के ऑरिजिनल प्रोजेक्ट प्रॉपनेंट (ओपीपी) के रूप में मंजूरी दे दी है। इस पूरी परियोजना को पूरा होने में 6 से 7 वर्ष लगेंगे। मुंबई से पुणे की 117.50 किलोमीटर की दूरी तय करने में आज तीन से चार घंटे में लगते हैं, लेकिन हाइपर लूप से यह दूरी महज 23 मिनट में पूरी हो की जाएगी। इस परियोजना से 36 अरब डॉलर के रोजगार पैदा होंगे।
वर्जिन हाइपरलूप वन के मुताबिक, राज्य सरकार दुनिया में हाइपरलूप प्रौद्योगिकी के पहले समर्थकों में से एक है। कंपनी दुनिया की पहली हाइपरलूप परियोजना लगाएगी। डीपी वर्ल्ड (डीपीडब्ल्यू) एक वैश्विक ट्रेड दिग्गज है और देश की प्रमुख पोर्ट्स और लॉजिस्टिक्स ऑपरेटर है। यह परियोजना के पहले चरण में 50 करोड़ डॉलर का निवेश करेगी।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने एक बयान में कहा कि महाराष्ट्र दुनिया में पहले हाइपरलूप ट्रांसपोर्टेशन प्रणाली की स्थापना करेगा और वैश्विक हाइपरलूप आपूर्ति श्रृंखला पुणे से शुरू होगी। महाराष्ट्र और भारत हाइपरलूप इंफ्रास्ट्रकर की स्थापना के अगुवा है और हमारे लोगों के लिए यह गर्व का क्षण है।
हाइपरलूप परियोजना से सेंट्रल पुणे से मुंबई की दूरी घटकर 35 मिनट की हो जाएगी। वर्जिन हाइपरलूप वन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी जे वाल्डर ने कहा, "इतिहास रचा जा रहा है। दुनिया के पहले हाइपरलूप ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम के मेजबानी की होड़ लगी है और यह घोषणा भारत को मजबूती से आगे बढ़ाती है।"
हाइपरलूप सिस्टम कैसे करता है काम
साल 2013 के गर्मियों में जब स्पेस एक्स के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एलन मस्क ने हाइपरलूप आर्किटेक्चर के विचार का प्रस्ताव दिया था, तब से परिवहन के इस साधन में लोगों की काफी रुचि देखने को मिल रही है, जो 1,000 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से चलने का वादा करता है। यह गति पारंपरिक रेल की गति से 10-15 गुना अधिक है और हाई-स्पीड रेल से दो से तीन गुना अधिक है। महाराष्ट्र सरकार ने दुनिया के पहले हाइपरलूप परिवहन प्रणाली की स्थापना की घोषणा की है। इस प्रणाली से पुणे को मुंबई से जोड़ा जाएगा और दोनों शहरों के बीच दूरी महज 35 मिनटों में तय की जा सकेगी, जिसे सड़क मार्ग से पूरा करने में फिलहाल 3.5 घंटों से अधिक लगते हैं।
महाराष्ट्र ने मुंबई-पुणे हाइपरलूप परियोजना के वर्जिन हाइपरलूप वन-डीपी वर्ल्ड (वीएचओ-डीपीडब्ल्यू) कंसोर्टियम को ऑरिजिनल प्रोजेक्ट प्रोपोनेंट (ओपीपी) नियुक्त किया है। केलिफरेनिया के लांस एजेलिस स्थित मुख्यालय वाली कंपनी वर्जिन हाइपरलूप हन का कहना है कि परिवहन के इस साधन में यात्री या माल को हाइपरलूप वाहन में चढ़ाया जाता है, जो कम दवाब वाले ट्यूब में इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन के माध्यम से तीव्रता से चलता है।
हाइपरलूप वाहन लिनियर इलेक्ट्रिक मोटर से गति हासिल करता है, जो पारंपरिक रोटरी मोटर का सुलझा हुआ संस्करण है। एक पारंपरिक इलेक्ट्रिक मोटर के दो प्रमुख हिस्से होते हैं - एक स्टेटर (यह हिस्सा स्थिर होता है) और एक रोटर (यह हिस्सा घूमता है या गति हासिल करता है)। जब स्टेटर में बिजली आपूर्ति की जाती है तो यह रोटर को घुमाता है, इससे मोटर चलती है।
वहीं, लिनियर इलेक्ट्रिक मोटर में यही दोनों प्रमुख हिस्से होते हैं। लेकिन इसमें रोटर घूमता नहीं है, बल्कि यह सीधे आगे की तरफ बढ़ता है, जो स्टेटर की लंबाई के बराबर चलता है। वर्जिन के हाइपरलूप वन सिस्टम में स्टेटर्स को ट्यूब में लगा दिया जाता है और रोटर को पॉड पर लगा दिया जाता है, और पॉड ट्यूब के अंदर गति कम करने के लिए स्टेटर से रोटर को दूर करता है।
वर्जिन हाइपरलूप ने अपनी वेबसाइट पर कहा है कि यह वाहन ट्रैक के ऊपर चुंबकीय उत्तोलन के माध्यम से तैरता है और किसी हवाई जहाज जितनी गति हासिल कर लेता है, क्योंकि ट्यूब के अंदर एयरोडायनेमिक ड्रैग (हवा का अवरोध) काफी कम होता है।
कंपनी ने कहा कि पूरी तरह से स्वायत्त हाइपरलूप सिस्टम्स को खंभों पर या सुरंग बनाकर स्थापित किया जाएगा, ताकि ये सुरक्षित रहे और किसी जानवर आदि से किसी प्रकार के नुकसान की संभावना ना हो। जब हमारी सड़कें और हवाई अड्डों पर तेजी से भीड़ बढ़ रही है तो ऐसे में हाइपरलूप परिवहन के एक तेज साधन की पेशकश के अलावा कई अन्य फायदे भी मुहैया कराएगा।
इस प्रणाली का पर्यावरण पर असर काफी कम होगा क्योंकि इससे कोई प्रत्यक्ष उत्सर्जन या शोर पैदा नहीं होगा। वर्जिन हाइपरलूप वन ने पूर्ण पैमाने पर (फुल स्केल) हाइपरलूप टेस्ट ट्रैक का निर्माण किया है, जिस पर अब तक सैकड़ों परीक्षण सफलतापूर्वक पूरे किए गए हैं।