नई दिल्ली। कोरोना महामारी की वजह से सोशल डिस्टेंसिग को देखते हुए कई भारतीय कार खरीदने का मन बना रहे हैं। हालांकि महामारी के जेब पर असर को देखते हुए सेकेंड हैड कार का विकल्प तेजी से मुख्य विकल्प बनता जा रहा है। नई कारों के मुकाबले सेकेंड हैंड कारों की खरीदारी काफी पेचीदा काम है। ऐसे में हम आपको बताते हैं कौन सी टिप्स आपको फैसला लेने में मदद करेगी।
बाजार में 2 तरह की सेकेंड हैंड कार
कार बाजार में 2 तरह की सेकेंड हैंड कारों की बिक्री हो रही है। इसमें पहला अन-सर्टिफाइड सेकेंड हैंड कार होती है- कार का मालिक या डीलर ग्राहक को खुद कार को जांचने का मौका देते हैं, हालांकि वो एक बार बिक्री के बाद कोई ऑफ्टर सेल्स सर्विस नहीं देते, यानि पूरी जिम्मेदारी ग्राहक की होती है। इस सेग्मेंट में कार 50 हजार रुपये जैसी छोटी कीमत से शुरू हो जाती है।
वहीं मारुति और महिंद्रा जैसी कंपनियों के द्वारा दी जा रही सेंकेंड हैंड कारों में सर्टिफाइड कारों की एक बड़ा हिस्सा होता है। यानि कंपनियां अपने स्तर पर कारों की स्थिति को सर्टिफाइड करती हैं और 6 महीने या एक साल तक ऑफ्टर सेल्स सर्विस और फ्री सर्विस ऑफर करती हैं। आम तौर पर सर्टिफाइड सेकेंड हैंड कार की कीमत 3 लाख के करीब से शुरू होती है।
जानिए कौन से टिप्स आपको बेहतर फैसला लेने में करेंगे मदद
सेंकेंड हैंड कार या नई कार
सबसे पहला सवाल यही होता है कि मुझे नई कार लेनी है या पुरानी कार। नई कार के मुकाबले सेकेंड हैंड कार लेने में सिर्फ एक फायदा होता है कि आपका प्रत्यक्ष खर्च काफी कम दिखता है। हालांकि जरूरी नहीं होता कि सेकेंड हैंड कार खरीदने और इस्तेमाल करने पर होने वाला वास्तविक खर्च भी नई कार के खर्च से कम हो। कई बार पैसे बचाने के चक्कर में खरीदी गई पुरानी कार, नई के मुकाबले ज्यादा खर्च करा देती है। ऐसे में सेकेंड हैंड कार खरीदते वक्त अपनी पसंद से ज्यादा अपनी जरूरत पर ध्यान दें और इन जरूरतों को पूरा करने वाली थोड़ी सस्ती नई कार, और उसके मुकाबले पसंद की गई सेकेंड हैंड कार की आपस में तुलना करें। साथ ही नई कार पर ऑफर और सेकेंड हैंड कार पर ऑफर को भी गणना में शामिल करें। सबसे अंत में देखें की आपको कार का कितना इस्तेमाल करना है, अगर आपको कार काफी ज्यादा इस्तेमाल करनी है तो सर्टिफाइड सेंकेंड हैंड, या फिर नई कार पर ध्यान दें।
कार की वैल्यूएशन
कार की वैल्यूएशन सेकेंड हैंड कार बाजार का सबसे पेचीदा हिस्सा होता है। असंगठित बाजारों में एक जैसी सेकेंड हैंड कार दो अलग अलग मार्केट में बिल्कुल अलग अलग दामों पर ऑफर की जा सकती है। सर्टिफाइड कारों की कीमत कुछ ज्यादा होती है, क्योंकि इसमें कंपनी अपने द्वारा किए गए काम का पैसा लेती है। हालांकि असंगठित बाजार से अन-सर्टिफाइड कार लेने जा रहे हैं तो आपको कारों की अच्छी समझ होनी चाहिए। अन-सर्टिफाइड कार को खरीदने में कोई जल्दबाजी न दिखाएं, पहले सभी विकल्पों पर नजर दौड़ा लें उसके बाद ही फैसला करें। अगर ऐसा नहीं कर सकते हैं तो दिग्गज ऑटो कंपनियो के द्वारा ऑफर की जा रही सेंकेंड हैंड कार के सर्टिफाइड सेक्शन पर नज़र दौड़ा लें ।
सेंकेंड हैंड कार पर फाइनेंस की सुविधा
बैंक और वित्तीय संस्थान सेकेंड हैंड कार के लिए कर्ज देते हैं, हालांकि ज्यादा पुरानी कारों के लिए कर्ज मिलना मुश्किल होता है। ज्यादा मांग में रहने वाली 5 साल से कम पुरानी कारों के लिए कर्ज पाने में खास मुश्किल नहीं होती, लेकिन इससे पुरानी कारों के लिए अक्सर कर्ज नहीं मिलता या फिर छोटी रकम ही मिलती है। हालांकि पुरानी कारों को बेचने वाले कई डीलर या कंपनियों का वित्तीय संस्थानों से करार होता है। ऐसे में जहां भी कारों को देख रहे हैं वहां ये जरूर पता करे लें कि इन कारों पर लोन दिया जा रहा है या नहीं, और उसके लिए शर्ते क्या हैं।
फाइनेंस की ब्याज दर
सेकेंड हैंड कारों पर ब्याज दर नई कारों के मुकाबले कहीं ज्यादा होती है। ये दर अक्सर पर्सनल लोन के बराबर या उससे ज्यादा होती है। बेहतर ये होगा कि सेंकेड हैंड कार लेने से पहले आपके आपने बैंक से मिल रहे पर्सनल लोन या गोल्ड लोन आदि की जानकारी ले लें। फिर उसके बाद सेकेंड हैंड कार पर मिलने वाले कर्ज के ऑफऱ की जानकारी ले लें। इसके बाद आप आसानी से तय कर पाएंगे की आपको कार के लिए कर्ज लेना है या उसके पैसे दूसरे लोन प्रोडक्ट से चुकाने हैं। यहां तक कि आप इन दोनो को आपस में मिला भी सकते हैं। अगर आपको बेहतर दरों पर दूसरा लोन प्रोडक्ट मिल रहा है लेकिन रकम पर्याप्त नहीं है तो आप इस रकम से ज्यादा डाउन पेमेंट करें। इसके बाद सेकेंड हैंड काऱ फाइनेंस से बाकी की रकम उठा सकते हैं। ये फार्मूला तब अपनाए जब सेंकेंड हैंड कार पर फाइनेंस महंगा पड़ रहा हो।
वाहन से जुड़े पेपर वर्क
अगर आप अपने स्तर पर पुरानी कार खरीद रहे हैं तो वाहन हाथ में लेने से पहले उसके पूरे कागजात हाथ में लें। आरटीओ से किसी भी चालान की जानकारी और गाड़ी से संबंधित क्राइम रिपोर्ट पाने का प्रयास करें। इस काम में वक्त लग सकता है लेकिन ये आपके लिए आगे फायदा करेगा। वहीं आरसी के जरिए पता करें कि गाड़ी पर कोई फाइनेंस तो नहीं चल रहा है। सब तरह से संतुष्ट होकर ही वाहन खरीदें। वहीं दूसरी तरफ कई कंपनियां हैं जो ये सारे काम पहले से ही करके रखती हैं। यही वजह है कि इनकी पुरानी गाड़ियों की कीमत ज्यादा रहती है। हालांकि वो आपके सरदर्द को खत्म कर देती हैं।