मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की जनजातीय शाखा ‘त्रिपुरा गणमुक्ति परिषद’ (जीएमपी) 11 जनवरी को राज्यपाल इंद्रसेन रेड्डी नल्लू को विभिन्न मुद्दों पर एक ज्ञापन सौंपेगी, जिसमें ग्रामीण रोजगार योजना में कम कार्य दिवस और एक स्वायत्त परिषद में कथित भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे शामिल हैं। जीएमपी महासचिव राधाचरण देबबर्मा ने एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि एक दिसंबर को दिल्ली में आदिवासी अधिकार राष्ट्रीय मंच के सम्मेलन में लिये गए निर्णय के अनुसार एक कार्यक्रम तैयार किया गया है।
देबबर्मा ने कहा, ‘‘हम चाहते हैं कि दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार जल्द से जल्द संविधान (125वां संशोधन) विधेयक, 2019 पारित करे, क्योंकि यह कई वर्षों से लंबित है।’’ इस विधेयक का उद्देश्य पूर्वोत्तर क्षेत्र के छठी अनुसूची क्षेत्रों में स्वायत्त परिषदों को अधिक वित्तीय और कार्यकारी शक्तियां प्रदान करना है।
एक करोड़ आदिवासी होंगे प्रभावित
एक आदिवासी नेता के अनुसार, इस संशोधन से असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के एक करोड़ आदिवासी प्रभावित होंगे। देबबर्मा ने टिपरा मोथा पर आदिवासी स्वायत्त क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (टीटीएएडीसी) को भ्रष्टाचार का अड्डा बनाने का आरोप भी लगाया। उन्होंने कहा, ‘‘2021 से ग्राम पंचायतों जैसी ग्राम समितियों का कोई निर्वाचित निकाय नहीं है। निर्वाचित निकायों की अनुपस्थिति में, टिपरा मोथा के नेता विकास कार्यों के लिए मिलने वाले धन का गबन कर रहे हैं। हम चाहते हैं कि भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार जल्द से जल्द ग्राम समितियों के चुनाव कराये।’’
11 जनवरी को आंदोलन की तैयारी
छठी अनुसूची के तहत गठित टीटीएएडीसी में 587 ग्राम समितियां हैं। पूर्व आदिवासी परिषद प्रमुख ने गारंटीकृत ग्रामीण रोजगार योजना मनरेगा के तहत "श्रम दिवसों में कमी" को लेकर भी भाजपा सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, ‘‘चालू वित्तीय वर्ष समाप्त होने में तीन महीने शेष हैं, मनरेगा ने राज्य में औसतन 42 श्रम दिवस सृजित किए हैं। कम श्रम दिवस सृजन की वजह से ग्रामीण गरीबों के लिए रोजगार के अवसरों को कम कर दिया है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम इन मुद्दों पर 11 जनवरी को एक आंदोलन कार्यक्रम आयोजित करेंगे और राज्यपाल को एक ज्ञापन सौंपकर उनसे हस्तक्षेप की मांग करेंगे।’’ (इनपुट- पीटीआई भाषा)