Friday, February 21, 2025
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असम में 9 करोड़ की नशीली दवा बरामद, ऑटो में ले जा रहे थे 30,000 गोलियां

सीएम हिमन्त बिश्व शर्मा ने बताया कि सिलचर आइजोल बाईपास पर कछार पुलिस ने एक ऑटो से याबा ड्रग की 30 हजार गोलियां बरामद की हैं। इनकी कीमत नौ करोड़ रुपये के करीब है।

Edited By: Shakti Singh
Published : Jan 30, 2025 21:12 IST, Updated : Jan 30, 2025 21:12 IST
Assam Police
Image Source : X/@HIMANTABISWA तस्कर और ड्रग्स के साथ पुलिसकर्मी

असम के कछार जिले में नौ करोड़ रुपये की कीमत की याबा गोलियां बरामद की गई हैं। मुख्यमंत्री हिमन्त बिश्व शर्मा ने गुरुवार को बताया कि नशीली दवा की गोलियों के साथ एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है। उन्होंने बताया कि विशेष सूचना के आधार पर की गई कार्रवाई के दौरान यह बरामदगी की गई।

सरमा ने एक्स पर एक पोस्ट में बताया "9 करोड़ रुपये की याबा गोलियां बरामद की गईं। सिलचर आइजोल बाईपास पर कछार पुलिस द्वारा किए गए एक स्रोत आधारित अभियान में, एक ऑटो रिक्शा को रोका गया और गहन तलाशी के दौरान, पड़ोसी राज्य से आ रही 30,000 याबा गोलियां बरामद की गईं।"

सीएम ने की पुलिस की तारीफ

हिमन्त बिश्व शर्मा ने पुलिस के इस कार्य के लिए सराहना करते हुए कहा कि एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है। याबा गोलियां भारत में अवैध हैं, क्योंकि इनमें मेथामफेटामाइन होता है, जो नियंत्रित पदार्थ अधिनियम के तहत अनुसूची II पदार्थ है। अपनी पोस्ट के अंत में हिमन्त बिश्व शर्मा ने लिखा कि असम पुलिस ने अच्छा काम किया और नशे के खिलाफ असम का हमारा मिशन जारी रहेगा।

क्या है याबा?

याबा एक गुलाबी रंग की मेथेम्फेटामाइन-कैफीन गोली है। यह बांग्लादेश में भारी मात्रा में बनाई जाती है। भारत में पूर्वोत्तर क्षेत्र के रास्ते इसकी तस्करी की जाती है। इसे थाई भाषा में 'पागलपन की दवा' भी कहा जाता है। इसकी उत्पत्ति पूर्वी म्यांमार के शान, काचिन और दो अन्य राज्यों में हुई। यहां से यह लाओस-थाईलैंड-म्यांमार गोल्डन त्रिकोण के जरिए दक्षिण-पूर्व बांग्लादेश पहुंचती है। याबा के कवर पर WY अक्षर लिखे होते हैं। यह थाईलैंड में सबसे खराब श्रेणी की दवा होती है और जो लोग इसका इस्तेमाल करते हैं, उन्हें 20 साल तक का कारावास या उन्हें भारी जुर्माना देना पड़ता है। जो लोग 20 ग्राम से अधिक याबा के साथ पकड़े जाते हैं, उन्हें आजीवन कारावास/मौत की सजा दी जाती है। शान राज्य में यह दवा घोड़ों को पहाड़ी क्षेत्रों की चढ़ाई अथवा भारी कामों के दौरान दी जाती थी। (इनपुट-पीटीआई)

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