आइजोल: ईसाई बहुल मिजोरम में बृहस्पतिवार को गिरिजाघरों में विशेष प्रार्थना के साथ ‘मिशनरी दिवस’ मनाया गया। सरकार द्वारा इस पवित्र दिवस के उपलक्ष्य में घोषित सार्वजनिक अवकाश की वजह से सभी सरकारी कार्यालय, शिक्षण संस्थान और कुछ कारोबारी प्रतिष्ठान बंद रहे। इस अवसर पर स्थानीय गिरिजाघरों में विशेष प्रार्थना आयोजित की गई, खासतौर पर बापिस्ट चर्च ऑफ मिजोरम (बीसीएम) और प्रेस्बिटेरियन चर्च से जुड़े गिरिजाघरों में। मिजोरम में हर साल ‘मिशनरी दिवस’ 1894 में वेल्स से दो इसाई मिशनरियों के यहां आने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
श्रद्धांजलि भी अर्पित की गई
बैपटिस्ट चर्च ऑफ मिजोरम (बीसीएम) और प्रेस्बिटेरियन समेत कई स्थानीय चर्चों में पूजा और विशेष प्रार्थना आयोजित की गईं। बीसीएम के कई स्थानीय चर्चों ने भी धन्यवाद कार्यक्रम के रूप में सामुदायिक दावतों का आयोजन किया, जिसके दौरान दो वेल्श ईसाई मिशनरियों रेव जेएच लोरेन और रेव एफडब्ल्यू सैविज को श्रद्धांजलि अर्पित की गई, जिन्होंने 1894 में तत्कालीन लुशाई हिल्स में कदम रखा था।
इस लिए मनाया जाता है ‘मिशनरी दिवस’
बता दें कि साल 1890 के दशक में दो वेल्श ईसाई मिशनरियों के आगमन की वर्षगांठ मनाने के लिए हर साल मिजोरम में 'मिशनरी दिवस' मनाया जाता है। वेल्श ईसाई मिशनरी रेव जेएच लोरेन और रेव एफडब्ल्यू सैविज जिन्हें मिज़ो लोग प्यार से 'पु बुआंगा' और 'सैप उपा' कहते हैं ने 11 जनवरी, 1894 को सैरांग गांव के पास त्लावंग नदी के तट पर असम से नाव द्वारा मिजोरम पहुंचे और ईसाई धर्म फैलाने की अपील की थी।
मिज़ो वर्णमाला से शिक्षित करने का उठाया वीणा
दोनों मिशनरियों ने लुशाई (मिज़ो)-अंग्रेजी शब्दकोश बनाया, जिसे स्थानीय लोग आज तक 'पु बुआंगा शब्दकोश' के नाम से जानते हैं। उन्होंने मिज़ोरम के उत्तरी भाग में प्रेस्बिटेरियन चर्च और राज्य के दक्षिण में बैपटिस्ट चर्च की स्थापना की। उन्होंने रोमन लिपियों का उपयोग करके मिज़ो वर्णमाला बनाकर मिज़ो लोगों को शिक्षित करने में भी मदद की।