बई। शिवसेना ने बीजेपी पर निशाना साधा है और बीजेपी के खिलाफ विपक्षी एकजुटता को जरूरी बताया है। अपने मुखपत्र 'सामना' के ज़रिए शिवसेना ने केंद्र शासन पर आरोप लगाया कि केंद्र में असीमित सत्ता होगी फिर भी गैर भाजपा शासित राज्यों को काम नहीं करने देना, उनका एजेंडा है। ऐसे राज्यों में रोज ही अड़चन व बाधा निर्माण करके लोकतंत्र का गला घोंटा जा रहा है।
शिवसेना ने केंद्र की बीजेपी सरकार पर हमला करते हुए कहा कि दिल्ली में वर्तमान में जो राजनीतिक व्यवस्था है उसे विपक्ष के अस्तित्व को ही नष्ट करना है। ऐसी तैयारी कुछ लोगों ने शुरू कर दी है। शिवसेना ने सामना के माध्यम से कहा कि बीरभूम की हिंसा निंदनीय है,परंतु उस हिंसा पर पानी डालने की बजाय तेल डालने का काम वहां के भाजपाई कर रहे हैं। बीरभूम हिंसा के माध्यम से ममता सरकार को बर्खास्त करने का यदि भाजपा प्रयास करती होगी तो यह उचित नहीं है।
शिवसेना ने कहा कि महाराष्ट्र जैसे राज्य में केंद्रीय जांच एजेंसियों को शस्त्र के रूप में इस्तेमाल करके भाजपा यहां की महाविकास आघाड़ी सरकार को हटाने का प्रयास कर रही है। तेलंगाना, तमिलनाडु, केरल में भी विरोधियों की सरकारों को अस्थिर करने का दांव-पेंच चल ही रहा है।
शिवसेना ने सवाल खड़े करते हुए कहा कि केंद्र की बीजेपी सरकार की यह सोच है कि जिन राज्यों के मुख्यमंत्री ‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म को करमुक्त नहीं करेंगे वे सभी देश के दुश्मन हैं, ऐसा इन लोगों ने तय कर डाला है। ऐसी मानसिकता से देश को बाहर निकालने वाला नेतृत्व विरोधी पक्ष में है क्या? होगा तो उस पर एकमत की मुहर लगेगी क्या?
शिवसेना ने कहा- कहीं नजर नहीं आता यूपीए
भाजपा प्रणित ‘एनडीए’ बचा नहीं है, परंतु कांग्रेस प्रणित ‘यूपीए’ भी आज कहीं नजर आता है क्या? निश्चित तौर पर ‘यूपीए’ में कौन है व उनका क्या हो रहा है, इसे लेकर शंका है। यूपीए की ताकत अभी तक कांग्रेस के इर्द-गिर्द घूमती रही है। हालांकि ममता बनर्जी ने विपक्षी पार्टियों को लिखे पत्र में स्वीकार किया है कि कांग्रेस के बगैर विपक्षी एकजुटता संभव नहीं है। लेकिन कांग्रेस पार्टी की अपनी कुछ अंतर्गत पारिवारिक समस्या हो सकती है, परंतु ये समस्या विरोधियों की एकजुटता में बाधा न बने।
शिवसेना ने सामना में लिखा है कि हिंदुत्व और हिंदू समाज जितना सहिष्णु और प्रगतिशील समाज दुनिया के दूसरे छोर तक और कोई नहीं होगा। विरोधियों की नई आघाड़ी ने इस विचार का ध्यान रखा तो ही, भाजपा विरोधी आघाड़ी को बल मिलेगा और ‘यूपीए’ का जीर्णोद्धार संभव होगा। अन्यथा ‘वही पुरानी बातों’ को दोहराते रहने का सिलसिला जारी रहेगा!