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कागल विधानसभा में चलता रहेगा हसन मुश्रीफ का जादू या होगा कुछ नया? जानें क्या कहते हैं आकंड़े

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहा है। राजनीतिक दल अपना पूरा दमखम लगाकर वोटरों को लुभाने में लगे हैं।

Edited By: Shailendra Tiwari @@Shailendra_jour
Published on: November 13, 2024 17:03 IST
कागल विधानसभा चुनाव- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV कागल विधानसभा चुनाव

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का ऐलान हो चुका है और तमाम राजनीतिक पार्टियों ने अपने प्रचार-प्रसार में तेजी ला दी है। राज्य में कुछ 288 सीटें हैं, जिनके लिए 20 नवंबर को वोट डाले जाएंगे। वहीं मतों की गणना 23 नवंबर 2024 को की जाएगी। महाराष्ट्र की इन्हीं 288 सीटों में से एक सीट हैं कागल विधानसभा। इस सीट पर अबतक एनसीपी के उम्मीदवार हसन मुश्रीफ लगातार जीतते आ रहे हैं। लेकिन इस बार एनसीपी दो धड़ों में बंट गई, जिस कारण इस सीट पर हसन मुश्रीफ के संकट बढ़ सकते है। जहां इस सीट पर महायुती के उम्मीदवार हसन मुश्रीफ है, तो महाविकास अघाड़ी के उम्मीदवार समरजीत सिंग घाटगे हैं।

कागल में है हसन मुश्रीफ का दबदबा

कागल विधानसभा, कोल्हापुर जिले के अन्तर्गत आने वाली 10 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। यह विधानसभा क्षेत्र पूरे कागल तहसील और इस जिले के अजरा और गघिंगलाज तहसीलों के कुछ हिस्सों को कवर करता है। इस सीट पर 1999 से हसन मुश्रीफ का दबदबा कायम है। लेकिन दिलचस्प बात है कि इस बार वे एनसीपी अजित पवार गुट के साथ हैं। ऐसे में शरद पवार के वोटर उनसे दूर जा सकते हैं।

इस सीट पर एनसीपी vs एनसीपी (एसपी)

कागल विधानसभा क्षेत्र से महायुती के उम्मीदवार हसन मुश्रीफ है, फिलहाल हसन मुश्रीफ  एनसीपी अजीत पवार गुट में हैं। वहीं हसन मुश्रीफ के खिलाफ कागल विधानसभा क्षेत्र से एनसीपी शरद पवार गुट के उम्मीदवार समरजीत सिंग घाटगे है यानी कि इस विधानसभा सीट पर NCP बनाम NCP (SP) की लड़ाई होगी।

क्या है कागल का राजनीतिक इतिहास?

राजनीतिक इतिहास की बात करें तो साल 1962, 1967 में इस सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार जीते। फिर 1972 और 1978 में निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की। फिर 1980 में कांग्रेस की वापसी हुई, 1985 में आईसीएस, फिर 1990 और 1995 में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। उसके बाद साल 1999 के चुनाव में यहां एनसीपी प्रत्याशी ने जीत दर्ज की और फिर यहां हमेशा एनसीपी का राज रहा। एनसीपी के मुशरिफ हसन मियालाल या कहें हसन मुश्रीफ 1999 से अब तक लगातार पांच बार यहां से चुनाव जीत चुके हैं।

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