मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को मुंबई पुलिस के पूर्व प्रमुख परमबीर सिंह से पूछा कि यदि उन्हें महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख द्वारा कथित रूप से गलत काम किए जाने की जानकारी थी तो उन्होंने मंत्री के खिलाफ पुलिस में FIR क्यों नहीं दर्ज कराई? मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता ने फटकार लगाते हुए परमबीर को चेतावनी दी कि अदालत उनकी खिंचाई कर सकती है। सिंह ने हाल में दावा किया था कि देशमुख ने पुलिस अधिकारी सचिन वाजे को बार और रेस्तरां से 100 करोड़ रुपये की वसूली करने को कहा था। मंत्री ने कुछ भी गलत काम करने से इनकार किया है।
चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस जीएस कुलकर्णी की एक खंडपीठ ने सिंह से पूछा कि उन्होंने पहले पुलिस में शिकायत क्यों नहीं दर्ज कराई? खंडपीठ ने कहा कि प्राथमिकी (FIR) के बिना हाई कोर्ट हस्तक्षेप नहीं कर सकता या CBI जैसी स्वतंत्र एजेंसी को जांच का निर्देश नहीं दे सकता। चीफ जस्टिस दत्ता ने कहा, ‘आप (सिंह) एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी हैं। आप साधारण आदमी नहीं हैं। गलत काम के खिलाफ शिकायत दर्ज कराना आपकी जिम्मेदारी थी। यह जानने के बावजूद कि आपके ‘बॉस’ द्वारा अपराध किया जा रहा है, आप (सिंह) चुप रहे।’
गत 17 मार्च को मुंबई के पुलिस आयुक्त पद से स्थानांतरित किए गए सिंह ने शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट का रूख किया था। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें हाई कोर्ट जाने को कहा था। अदालत सिंह द्वारा हाई कोर्ट में 25 मार्च को दाखिल एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई कर रही थी जिसमें देशमुख के खिलाफ CBI जांच कराए जाने का अनुरोध किया गया है। बुधवार को दलीलों को सुनने के बाद अदालत ने राज्य सरकार द्वारा उठाई गई प्रारंभिक आपत्तियों और सिंह द्वारा मांगी गई राहत पर अपना आदेश सुरक्षित रखा। अदालत ने 2 वकीलों और एक प्रोफेसर द्वारा दायर 3 अन्य याचिकाओं पर अपना आदेश सुरक्षित रखा। इन याचिकाओं में मामले में स्वतंत्र जांच का अनुरोध किया गया है।
पीठ ने यह जानना चाहा कि क्या किसी नागरिक ने इस मामले में पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है तो महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोनी ने कहा कि वकील जयश्री पाटिल ने 21 मार्च को दक्षिण मुंबई के मालाबार हिल पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई थी, लेकिन अभी तक कोई FIR दर्ज नहीं की गई है। पाटिल ने उच्च न्यायालय में एक याचिका भी दाखिल की है। पाटिल ने पीठ को बताया कि पुलिस में दी गई अपनी शिकायत में उन्होंने सिंह के आरोपों के आधार पर प्राथमिकी दर्ज करने का अनुरोध किया था। तब अदालत ने कुंभकोनी से पूछा कि क्या पुलिस द्वारा कोई पूछताछ की गई है, और उसने उनसे पुलिस थाने की डायरी प्रस्तुत करने के लिए भी कहा है।
अदालत ने यह भी पूछा कि पुलिस प्राथमिकी दर्ज करने में संकोच क्यों कर रही है। मुख्य न्यायाधीश दत्ता ने कहा, ‘आपको शर्म क्यों आती है? अगर प्राथमिकी दर्ज की जाती है तो क्या गलत है?’ कुंभकोनी ने बाद में अदालत को बताया कि स्टेशन डायरी को तुरंत अदालत में पेश नहीं किया जा सकता है, लेकिन पाटिल द्वारा दायर की गई शिकायत की डायरी में कोई प्रविष्टि नहीं है। अदालत ने कहा, ‘कार्रवाई का उचित तरीका आपके (सिंह) लिए पहले पुलिस के समक्ष शिकायत दर्ज करना होगी। यदि पुलिस FIR दर्ज नहीं करती है, तो आपके पास मजिस्ट्रेट के सामने एक आवेदन दाखिल करने का विकल्प है।’
सिंह के वकील विक्रम नानकानी ने कहा कि उनके मुवक्किल इस ‘चक्रव्यूह’ से बचना चाहते थे। हालांकि उच्च न्यायालय ने कहा कि यह कानून में निर्धारित प्रक्रिया है। मुख्य न्यायाधीश दत्ता ने पूछा, ‘क्या आप कह रहे हैं कि आप कानून से ऊपर हैं।’ नानकानी ने दलील कि उनके पास उच्च न्यायालय जाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था, क्योंकि शिकायत और आरोप ‘राज्य प्रशासन के प्रमुख’ के खिलाफ थे। पीठ ने कहा कि एफआईआर के बिना वह मामले की जांच एक स्वतंत्र एजेंसी से कराये जाने के निर्देश देने संबंधी कोई आदेश पारित नहीं कर सकती है। मुख्य न्यायाधीश दत्ता ने कहा, ‘हमारी प्रथम दृष्टया राय यह है कि FIR के बिना, यह अदालत जांच का आदेश नहीं दे सकती।’
महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोनी ने याचिका को खारिज किये जाने का अनुरोध किया और दावा किया कि याचिका व्यक्तिगत प्रतिशोध की भावना के साथ दाखिल की गई है। कुंभकोनी ने कहा, ‘जनहित में याचिका दायर नहीं की गई है, यह व्यक्तिगत शिकायतों और हितों से युक्त है। याचिकाकर्ता इस अदालत में गंदे हाथों और गंदी सोच के साथ आये है।’ सिंह ने अपनी याचिका में दावा किया है कि देशमुख ने निलंबित पुलिस अधिकारी सचिन वाजे समेत पुलिस अधिकारियों से बार और रेस्तरां से प्रतिमाह 100 करोड़ रुपये की वसूली करने को कहा था।
उद्योगपति मुकेश अंबानी के मुंबई स्थित आवास के निकट एक वाहन में विस्फोटक सामग्री मिली थी और इस मामले में राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने वाजे को गिरफ्तार किया था। सिंह ने पीआईएल में राज्य में पुलिस तबादलों में कथित भ्रष्टाचार का मुद्दा भी उठाया है। सीबीआई की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने अदालत से कहा कि अदालत जो भी आदेश देगी, एजेंसी उसका पालन करेगी।