मुंबई: शिवसेना नेता और राज्यसभा सांसद संजय राउत ने किसान ट्रैक्टर रैली में हुई हिंसा के बाद केंद्र सरकार और देश के लोकतंत्र पर कई सवाल पूछे हैं। राउत ने कहा कि लाल किले और तिरंगे का अपमान बर्दाश्त नहीं है लेकिन माहौल क्यों बिगड़ा। शिवसेना नेता ने कहा कि सरकार चाहती तो मंगलवार को गणतंत्र दिवस के मौके पर हुई हिंसा को रोक सकती थी। राउत ने साथ ही सरकार पर सवाल दागा कि क्या इसी दिन का इंतजार हो रहा था? उन्होंन कहा कि सरकार ने आखिर तक लाखों किसानों की बात नहीं सुनी।
‘सरकार चाहती तो हिंसा रोक सकती थी’
शिवसेना नेता राउत ने ट्वीट कर कहा, ‘अगर सरकार चाहती तो आज की हिंसा रोक सकती थी। दिल्ली में जो चल रहा है, उसका समर्थन कोई नहीं कर सकता। कोई भी हो लाल किला और तिरंगे का अपमान सहन नहीं करेंगे। लेकिन माहौल क्यों बिगड़ गया? सरकार किसान विरोधी कानून रद्द क्यों नहीं कर रही? क्या कोई अदृश्य हाथ राजनीति कर रहा है? जय हिंद।’ एक अन्य ट्वीट में राउत ने कहा, ‘क्या सरकार इसी दिन का बेसब्री से इंतजार कर रही थी? सरकार ने आखिर तक लाखों किसानों की बात नहीं सुनी। ये किस टाइप का लोकतंत्र हमारे देश में पनप रहा है? ये लोकतंत्र नहीं भाई, कुछ और ही चल रहा है। जय हिंद।’
लाल किले पर फराया गया पीले रंग का झंडा
बता दें कि लाठी-डंडे, राष्ट्रीय ध्वज एवं किसान यूनियनों के झंडे लिए हजारों गणतंत्र दिवस के दिन ट्रैक्टरों पर सवार हो बैरियरों को तोड़ व पुलिस से भिड़ते हुए लाल किले की घेराबंदी के लिए राजधानी में दाखिल हो गए। लाल किले में किसान ध्वज-स्तंभ पर भी चढ़ गए। वहीं, कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग को लेकर पिछले 2 महीने से दिल्ली की सीमा पर विरोध प्रदर्शनों की अगुवाई करने वाले किसान नेताओं ने इन प्रदर्शनकारियों से खुद को अलग कर लिया। एक युवक को लाल किले में ध्वज-स्तंभ पर एक त्रिकोण आकार का पीले रंग का झंडा फहराते देखा गया। इसी पर देश के स्वतंत्रता दिवस समारोह के दौरान झंडा फहराया जाता है। हालांकि बाद में प्रदर्शनकारियों को लाल किले के परिसर से हटा दिया गया।
संघर्ष क्षेत्र ITO की तरह दिख रहा था
गणतंत्र दिवस के दिन राजपथ पर देश की सैन्य क्षमता का प्रदर्शन किया जाता है। किसानों को गणतंत्र दिवस परेड के आयोजन के बाद तय मार्ग पर ट्रैक्टर परेड़ की अनुमति दी गई थी, लेकिन इन शर्तों का उल्लघंन हुआ। कई स्थानों पर प्रदर्शनकारियों और पुलिसकर्मियों के बीच झड़प हुई और लाठीचार्ज किया गया। पुलिस ने कुछ जगहों पर अशांत भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े। वहीं ITO पर सैकड़ों किसान पुलिसकर्मियों का लाठियां लेकर दौड़ाते और खड़ी बसों को अपने ट्रैक्टरों से टक्कर मारते दिखे। ITO एक संघर्षक्षेत्र की तरह दिख रहा था जहां गुस्साए प्रदर्शनकारी एक कार को क्षतिग्रस्त करते दिखे। सड़कों पर ईंट और पत्थर बिखरे पड़े थे। यह इस बात का गवाह था कि जो किसान आंदोलन 2 महीने से शांतिपूर्ण चल रहा था अब वह शांतिपूर्ण नहीं रहा।