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कोरोना वायरस मरीज के तौर पर एक फोटो पत्रकार की आपबीती

फोटो पत्रकार होने के नाते अपने इर्द-गिर्द की महत्वपूर्ण घटनाओं की तस्वीरें लेने के लिए हमेशा कुछ समय इंतजार करना पड़ता है लेकिन कोविड-19 के मरीज के तौर पर मुझे एक हफ्ता गुजारने की तैयारी के लिए थोड़ा भी समय नहीं मिला।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published : April 29, 2020 20:33 IST
Know the photo journalist's experience as a Coronavirus patient
Image Source : Know the photo journalist's experience as a Coronavirus patient

मुंबई: फोटो पत्रकार होने के नाते अपने इर्द-गिर्द की महत्वपूर्ण घटनाओं की तस्वीरें लेने के लिए हमेशा कुछ समय इंतजार करना पड़ता है लेकिन कोविड-19 के मरीज के तौर पर मुझे एक हफ्ता गुजारने की तैयारी के लिए थोड़ा भी समय नहीं मिला। महाराष्ट्र और खासकर मुंबई में महामारी के पैर पसारने के बीच, इस असाधारण समय को तस्वीरें में समेटने के लिए मैं अपना काम जारी रखे हुए था, पर 20 अप्रैल को आयी एक कॉल ने हमेशा के लिए मेरी जिंदगी बदल दी। दूसरे लोगों की तरह ही काम पर निकलने के लिए सुबह मैं तैयार हो रहा था। इसी बीच एक छायाकार मित्र का फोन आया।

उन्होंने मुझे बताया कि बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) के एक अधिकारी ने कहा है कि मेरे नमूने की रिपोर्ट में कोरोना वायरस संक्रमण की पुष्टि हुई है और जल्द ही मुझे अस्पताल ले जाने के लिए एक एंबुलेंस आएगी। कुछ सहयोगी फोटो पत्रकारों के संक्रमित होने के बाद हमने भी जांच करायी थी। कुछ देर बाद मुझे एक अज्ञात नंबर से एक फोन आया और एक व्यक्ति ने पूछा, ‘‘कहां हो आप? मैं बीएमसी से बोल रहा हूं और आपको बताना चाहता हूं कि आपकी रिपोर्ट में संक्रमण की पुष्टि हुई है।’’

पहली बार सुनकर तो मुझे धक्का लगा लेकिन अब मैं खुद को यह खबर अपने परिवार को बताने के लिए तैयार कर रहा था। मैं घर पहुंचा और माता-पिता और पत्नी को बुलाकर बाहर ही इंतजार करने लगा। मैंने उन सबको कहा कि मुझसे दूर रहें। मैं एंबुलेंस के इंतजार में वहीं दरवाजे पर बैठ गया। इसी दौरान एक और दोस्त ने फोन कर बताया कि वह भी संक्रमित है। उसने मुझे बताया कि नगर निगम बिना लक्षण वाले मरीजों को अगले 14 दिन के लिए एक होटल में पृथक-वास में रखेगा। एंबुलेंस को आने में समय लगता देख मैंने अपनी कार से ही होटल की तरफ जाने का फैसला किया। जब मैं वहां पहुंचा मैं सबके लिए एक ‘अछूत’ बन चुका था। मैं कार से निकल रहा था तो मेरे कुछ दोस्त और अन्य संदिग्ध मरीज मेरे पास आए। मैंने गौर किया कि पास की इमारतों से लोग झांक रहे थे। होटल के एक कर्मचारी ने हमें कमरे का नंबर दिया और कुछ दूरी से मेरी और पानी की बोतलें और सैनेटाइजर फेंक दिए।

अगले दिन (21 अप्रैल) हमें बताया गया कि हमें एलिवेटर के पास से खाना लेना होगा। मेरी पत्नी ने मुझे बताया कि मेरी आवासीय सोसाइटी के पांच लोग संक्रमित हुए हैं और परिसर को अगले 14 दिन के लिए सील कर दिया गया है। मैं यह जानकार उदास हो गया कि मेरे और मेरे दोस्तो के कारण अन्य निवासियों को घरों के भीतर कैद रहना पड़ेग। यह भी चिंता होने लगी कि मेरा परिवार भी शायद संक्रमित हो गया होगा। जल्द ही बीएमसी के एक वार्ड अधिकारी ने हमें बताया कि हमें अपना बैग पैक करना होगा क्योंकि हमें दूसरे होटल में ले जाया जाएगा।

कुछ घंटे बाद एक डॉक्टर ने हमें बताया कि जो लोग पहले से हाइपरटेंशन और मधुमेह तथा गंभीर रोगों से पीड़ित हैं उन्हें अंधेरी में सेवन हिल्स अस्पताल में ले जाया जाएगा। मेरे समेत चार मीडियाकर्मियों को वहां ले जाया गया। अपनी जिंदगी के 39 साल में अस्पताल जाते समय मुझे कभी इतना नहीं डर नहीं लगा। गेट से प्रवेश करते हुए सैनेटाइजर मशीन लिए हुए एक व्यक्ति नजर आया जिसने पहले मुझे, फिर मेरे बैग को और आखिर में एंबुलेंस को संक्रमण मुक्त किया। मुझे अस्पताल के एक वार्ड में भर्ती किया गया। यहां कोविड-19 के मरीजों के लिए 56 बेड बनाए गए। इसी बीच प्रमुख प्रशिक्षण नर्स एग्नेश कुट्टियानी से मेरी भेंट हुई। जब मैंने उनकी तस्वीरें ली तो उन्होंने गर्व से कहा, ‘‘जब अस्पताल ने हमसे कोविड-19 मरीजों की सेवा में शामिल होने के लिए पूछा तो सबसे पहले मैंने ही हाथ उठाया। मेरे पति डरे हुए थे लेकिन मेरी बेटी ने मुझसे कहा कि यह मेरी ड्यूटी है।’’

तीसरे दिन, सुबह पांच बजे संक्रमण की दूसरी जांच हुई। इसके बाद ईसीजी और अन्य जांच हुई। अस्पताल के माहौल से मैं तालमेल बनाने की कोशिश कर रहा था लेकिन मुझे बार-बार अपने बुजुर्ग अभिभावकों की याद आ रही थी। उन्हें भी जांच करवानी पड़ी लेकिन मेरी पत्नी और बेटी बच गयी क्योंकि उनमें किसी तरह के लक्षण नहीं दिखे। नकारात्मक विचार को दूर रखने के लिए मैंने अस्पताल के कर्मियों से बातचीत करना शुरू कर दिया , जो खतरे के बावजूद मरीजों के उपचार में जुटे थे। सफाई कर्मी मोरोबा कांबले के साथ बातचीत मुझे हमेशा याद रहेगी। कांबले ने कहा, ‘‘मैं अपना काम दिल से करता हूं। मुझे नहीं पता कि महान काम क्या होता है। मुझे बस इतना पता है कि अगर मैं संक्रमित हुआ और मर गया तो मुझे शहीद कहा जाएगा। मुझे खुशी है कि मेरे काम में परिवार ने भी मेरा हौसला बढाया है।’’

संकट के समय अस्पताल में काम करने वाले एक ऑटोरिक्शा चालक महेश खार्वी से भी मेरी बात हुई। खार्वी ने मुझे बताया कि लॉकडाउन लागू होने पर ‘‘मेरी बेटी ने मुझसे कहा कि क्या मैं उस अस्पताल में काम करना चाहूंगा जहां पर वह काम करती है। मैंने तुरंत हां कह दिया। घर पर बैठने से अच्छा लगा कि कुछ काम किया जाए।’’ पांचवे दिन फिर से मेरा नमूना लिया गया और एक डॉक्टर ने मुझे बताया कि बलगम की दूसरी जांच में संक्रमण नहीं पाया गया लेकिन तीसरी जांच से तय होगा कि संक्रमण से छुटकारा मिला है या नहीं। छठे दिन सकारात्मक सोच के साथ दिन की शुरुआत हुई क्योंकि मुझे पता चला कि मेरे अभिभावकों में संक्रमण की पुष्टि नहीं हुई। दिन के अंत में डॉ.

प्रतिभा सिंघल ने मुझे बताया कि तीसरी जांच में संक्रमण नहीं मिला है। मेरी खुशी का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। जब मैंने अपना बैग पैक किया तो अस्पताल के कई कर्मचारियों ने मेरे साथ सेल्फी ली। अपनी आवासीय सोसाइटी में लौटने पर लोगों ने जिस गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया, यह मेरे दिल को छू गया। घर पर मुझे नौ मई तक पृथक-वास में ही रहना है और बस अपनी परी (मेरी बेटी) को दूर से देख सकता हूं। घर पर अब खुद को महफूज महसूस कर रहा हूं। 

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