मराठा समाज की ओर से किए गए लंबे आंदोलन के बाद आखिरकार महाराष्ट्र की सरकार ने मराठाओं को 10 फीसदी आरक्षण दे दिया है। हालांकि, इस आरक्षण पर संकट के बादल घिरने भी शुरू हो गए हैं। मराठा आरक्षण के खिलाफ शुक्रवार को बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है। इस याचिका में दलील दी गई है कि यह आरक्षण गैरकानूनी तरीके से दिया गया है। याचिका दायर करने वालों ने मराठा आरक्षण को तत्काल रद्द करने की मांग की है। आइए जानते हैं ये पूरा मामला।
याचिका में क्या कहा गया है?
बॉम्बे हाई कोर्ट में यह याचिका एड गुणरत्न सदावर्ते , डॉ जयश्री पाटिल , राजाराम पाटिल और श्री लिंगे ने दायर की है। याचिका में दावा किया गया है कि मराठा समाज को संविधान को तोड़मोड़ कर आरक्षण दिया गया है। याचिका में कहा गया है कि किसी भी समाज को राज्य सरकार आरक्षण नहीं दे सकती। राज्य सरकार को जो आरक्षण है उसमे केटेगरी करने का अधिकार है। लेकिन ओपन में केटेगरी करना या 50 प्रतिशत के ऊपर का आरक्षण देने का अधिकार नहीं है। याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार ने संविधान की धारा 125 , 142 का उल्लघन किया है।
याचिका में अन्य मांगे भी
बॉम्बे हाई कोर्ट में दायर याचिका में मराठा आरक्षण को तत्काल रद्द करने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि 50 प्रतिशत के ऊपर का आरक्षण दिया नही जा सकता। जस्टिस सुनील सुक्रे को कमीशन का अध्यक्ष बनाया था, वह गैर कानूनी है। राज्य सरकार ने कई कमिटी और आयोग बनाए है। उस पर रिटायर जस्टिस की नियुक्ति की है। उनको हाइकोर्ट के जज से भी ज़्यादा सैलरी दी जा रही है। इसे भी रद्द करने की मांग की गई है।
विशेष अधिवेशन में मिला था आरक्षण
महाराष्ट्र सरकार ने बीते 22 फरवरी को विधानसभा का विशेष अधिवेशन बुलाकर मराठा समाज को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का बिल पास किया था। इस बिल को सर्वसम्मति से पास किया गया था। मराठा समाज को अलग से आरक्षण दिया है। उनके लिए अलग MSR SEBC केटेगरी बनाई है। यह आरक्षण 50 प्रतिशत के ऊपर का है।