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महाराष्ट्र में पहली बार मिला निपाह वायरस, वैज्ञानिकों ने किया अलर्ट

महाबलेश्वर के जंगलों में एक गुफा के अंदर रहने वाले चमगादड़ों में निपाह वायरस की मौजूदगी की पुष्टि हुई है। 

Written by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: June 23, 2021 10:50 IST
महाराष्ट्र में पहली बार मिला निपाह वायरस, वैज्ञानिकों ने किया अलर्ट का खतरा- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV महाराष्ट्र में पहली बार मिला निपाह वायरस, वैज्ञानिकों ने किया अलर्ट का खतरा

नई दिल्ली: कोरोना वायरस की दूसरी लहर में हुई बड़ी तबाही के बाद तीसरी लहर का खतरा मंडराने के बीच अब एक और वायरस से खतरे की खबर आई है।  सतारा जिले के महाबलेश्वर की गुफाओं में निपाह वायरस (Nipah Virus) का पता चला है।  महाराष्ट्र के महाबलेश्वर के जंगलों में एक गुफा के अंदर रहने वाले चमगादड़ों में निपाह वायरस की मौजूदगी की पुष्टि हुई है। वैज्ञानिकों ने इस वायरस को लेकर अलर्ट किया है। इस खबर की पुष्टि होते ही स्थानीय लोग काफी परेशान हैं और उन्हें एक नए वायरस से खतरे की चिंता सता रही है।

दरअसल मार्च 2020 में पुणे के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) के वैज्ञानिकों ने महाबलेश्वर की एक गुफा में चमगादड़ों के गले से स्वैब के नमूने लिए थे। इस सैंपल की जांच में पता चला कि चमगादड़ों के स्वैब में निपाह वायरस पाए गए। वैज्ञानिकों की टीम का नेतृत्व डॉ. प्रज्ञा यादव के अनुसार  इससे पहले निपाह वायरस महाराष्ट्र के किसी भी चमगादड़ में नहीं मिला था। निपाह वायरस अगर इंसानों में फैलता है तो जानलेवा हो सकता है। निपाह वायरस का अभी तक कोई इलाज नहीं खोजा जा सका है, इसलिए मृत्यु का जोखिम 65 से 100 प्रतिशत है.  

निपाह वायरस सीधे संपर्क से फैलता है. साथ ही संक्रमित व्यक्ति के साथ खाना शेयर करने से भी फैल सकता है. इससे संक्रमित व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ होती है, खांसी आती है, थकान और दर्द महसूस होता है. इसके अलावा दिमागी बुखार जैसे लक्षण दिखाई देते हैं. ज्यादा बुखार आने पर दिमाग सूज जाता है और इंसान की मौत हो जाती है।

भारत में इससे पहले वर्ष 2001 में निपाह वायरस पाया गया था। उस साल जनवरी-फरवरी महीने में पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी में इसके 66 मरीज पाए गए थे। इनमें से 45 मरीजों की मौत हो गई थी। वर्ष 2007 में पश्चिम बंगाल के ही नदिया जिले में निपाह के 5 मरीज पाए गए थे। दुनिया को निपाह वायरस के बारे में सबसे पहले वर्ष 1998 में पता लगा। यह वायरस मलेशिया में सुअर पालने वालों में सबसे पहले पाया गया था। यहां से ये वायरस चमगादड़ों के जरिए दुनियाभर में फैल गया।

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