Saturday, November 23, 2024
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Mumbai: पुलिस वाले पर 350 रुपये की रिश्वत का था आरोप, हाईकोर्ट ने 24 साल बाद किया बरी

बॉम्बे हाईकोर्ट ने पाया कि प्रॉसीक्यूशन यह साबित करने में नाकाम रहा कि पुलिसकर्मी ने 350 रुपये की रिश्वत ली थी। महाराष्ट्र एंटी-करप्शन ब्यूरो (भ्रष्टाचार-निरोधक ब्यूरो) ने 1988 में तत्कालीन पुलिस उप निरीक्षक दामू अव्हाड के खिलाफ 350 रुपये रिश्वत मांगने के आरोप में मामला दर्ज किया था।

Reported By : PTI Edited By : Swayam Prakash Updated on: July 01, 2022 19:29 IST
Representational Image- India TV Hindi
Image Source : REPRESENTATIONAL IMAGE Maharashtra Police (Representational Image)

Highlights

  • भ्रष्टाचार मामले में 24 साल बाद पुलिसकर्मी बरी
  • पुलिस वाले पर 350 रुपये रिश्वत लेने का आरोप
  • 1998 में नासिक की अदालत ने सुनाई थी सजा

Mumbai: भ्रष्टाचार के मामले में 24 साल पहले दोषी ठहराए जाने और एक साल की सजा काटने वाले पुलिसकर्मी को बॉम्बे हाईकोर्ट ने घूस लेने के आरोप से बरी कर दिया है। अदालत ने पाया कि प्रॉसीक्यूशन यह साबित करने में नाकाम रहा कि पुलिसकर्मी ने 350 रुपये की रिश्वत ली थी। महाराष्ट्र एंटी-करप्शन ब्यूरो (भ्रष्टाचार-निरोधक ब्यूरो) ने 1988 में तत्कालीन पुलिस उप निरीक्षक दामू अव्हाड के खिलाफ 350 रुपये रिश्वत मांगने के आरोप में मामला दर्ज किया था।

 
24 साल बाद आया पुलिसकर्मी के हक में फैसला

अगस्त 1998 में नासिक की एक विशेष अदालत ने दामू को दोषी ठहराते हुए एक साल कैद की सजा सुनाई थी। इसके बाद दामू ने इसी साल हाईकोर्ट में एक अपील दायर की थी। अब इस मामले में सुनवाई करते हुए गुरुवार को न्यायमूर्ति वी जी वशिष्ठ की एकल पीठ ने पारित अपने आदेश में कहा, "केवल आरोपी से पैसे की बरामदगी के आधार पर उसे दोषी नहीं ठहराया जा सकता।" पीठ ने आगे कहा, "प्रॉसीक्यूशन दामू के खिलाफ मामले को साबित करने में विफल रहा है।" इस आदेश की कॉपी शुक्रवार को उपलब्ध हुई। अदालत ने नासिक में येओला तालुका पुलिस थाने में तैनात तत्कालीन उप निरीक्षक को बरी कर दिया है। प्रॉसीक्यूशन के अनुसार, दामू ने मार्च 1988 में एक व्यक्ति से उसके भाई को जमानत दिलाने में मदद के एवज में कथित तौर पर 350 रुपये की रिश्वत मांगी थी।  

200 रुपये की घूस में 28 साल बाद इंसाफ

गौरतलब है कि मुंबई में ही कुछ दिनों पहले ऐसा ही एक मामला सामने आया था। जब एक हेड कॉन्स्टेबल पर 200 रुपये की रिश्वत लेने का आरोप लगा था। आरोप लगने के बाद मामला स्थानीय कोर्ट में पहुंचा। कोर्ट ने रिश्वत के मामले में हेड कॉन्स्टेबल को दोषी ठहराया था। स्थानीय अदालत के बाद मामला बॉम्बे हाईकोर्ट पहुंचा और 200 रुपये की रिश्वत का केस 28 साल तक चला। आखिर में हाईकोर्ट से हेड कॉन्स्टेबल को रिहाई तो मिली लेकिन दुर्भाग्य की बात यह थी कि कोर्ट का यह फैसला तब आया, जब हेड कॉन्स्टेबल की मौत हो चुकी थी।

बॉम्बे हाईकोर्ट में यह केस हेड कॉन्स्टेबल की पत्नी और बेटी ने लड़ा थी। 31 मार्च को मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति प्रकाश नाइक की बेंच ने सोलापुर कोर्ट के 31 मार्च, 1998 के आदेश को रद्द कर दिया था और कहा था कि रिश्वत की मांग पर मुकदमा चलाने का मामला संदेह के घेरे में है। सबूतों की कमी को ध्यान में रखते हुए, आरोपी को संदेह का लाभ मिलता है और वह बरी होने का हकदार है।

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