Lok Sabha Elections 2024: लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार ने जोर पकड़ लिया है। इस बीच महाराष्ट्र की सियासत भी दिलचस्प मोड़ ले रही है। महागठबंधन में सीट बंटवारे मची खींचतान भी मची हुई है। महाराष्ट्र की दो प्रमुख क्षेत्रीय पार्टियों के नेता शरद पवार और उद्धव ठाकरे अपने राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। यह चुनाव मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री एवं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के प्रमुख अजित पवार के लिए भी परीक्षा के समान है। शिंदे और अजित पवार अपने दलों से अलग होकर बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए में शामिल हो गए। लेकिन ठाकरे और शरद पवार के लिए चुनौती अधिक बड़ी है क्योंकि वे सत्ता से बाहर हैं और उन्होंने अपने दलों - क्रमशः शिवसेना और राकांपा का मूल नाम और चुनाव चिह्न भी गंवा दिया है।
चुनाव आयोग और महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष ने अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी और शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना को असली एनसीपी और असली शिवसेना के रूप में मान्यता दी है। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश अकोलकर ने कहा कि दोनों नेताओं को चुनाव में प्रभावशाली प्रदर्शन करने की जरूरत है, अन्यथा उनके राजनीतिक अस्तित्व के लिए खतरा पैदा हो जाएगा। अकोलकर ने कहा कि इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव तक अपने समूह को एकजुट रखने के लिए उद्धव ठाकरे के लिए जरूरी है कि उनके कम से कम छह-सात उम्मीदवार चुनाव जीतें।
ठाकरे ने अबतक 21 उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की
प्रकाश अकोलकर ने बताया कि ठाकरे को उतनी ही लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ना है जितनी सीट पर उनकी पार्टी ने तब चुनाव लड़ा था जब वह 2019 में भाजपा के सहयोगी थी। ठाकरे ने अबतक 21 उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर ऐसा ही किया है जबकि कांग्रेस इनमें से कुछ सीट पर दावा कर रही थी। महाविकास आघाडी (एमवीए) में शिवसेना (यूबीटी) और कांग्रेस के साथ सीट बंटवारे के तहत एनसीपी (शरदचंद्र पवार) 10 लोकसभा क्षेत्रों में चुनाव लड़ रही है। लेकिन अकोलकर ने कहा कि शरद पवार के लिए अहम सीट उनके गृह क्षेत्र बारामती की है जहां उनकी बेटी और तीन बार की सांसद सुप्रिया सुले को अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार से चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
बारामती हार गए तो सबकुछ खत्म!
अकोलकर ने कहा, “ अगर शरद पवार बारामती हार गए तो उनका सब कुछ खत्म हो जाएगा। यह उनके और उनके भतीजे अजित के बीच की लड़ाई है।” जहां 83 वर्षीय शरद पवार अपने पांच दशक से अधिक के राजनीतिक करियर में कभी चुनाव नहीं हारे, वहीं उद्धव ठाकरे ने कभी भी सीधा चुनाव नहीं लड़ा है। जब ठाकरे मुख्यमंत्री बने, तो वह विधान परिषद के लिए चुने गए थे। चुनावों से पहले, ठाकरे राज्य के विभिन्न हिस्सों की यात्रा कर रहे हैं और उनकी रैलियों को अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है।
बेटी की राह आसान बनाने में जुटे शरद पवार
शरद पवार भी पुणे जिले (जहां बारामती निर्वाचन क्षेत्र है) में अपने पुराने प्रतिद्वंद्वियों से संपर्क कर रहे हैं ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उनकी बेटी की राह आसान हो। दलित नेता प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन आघाडी (वीबीए) के साथ एमवीए की सीट-बंटवारे की बातचीत विफल हो गई जिसके बाद एमवीए और ‘महायुति’ गठबंधन के बीच सीधा मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है और अकोलकर की राय में इससे सत्तारूढ़ गठबंधन को फायदा होगा।
पवार और ठाकरे को पारंपरिक वोटरों पर भरोसा
वरिष्ठ पत्रकार अभय देशपांडे ने बताया कि चुनाव शरद पवार और उद्धव ठाकरे के इस दावे का भी इम्तिहान है कि उनके संबंधित दलों के पारंपरिक मतदाता और कैडर उनके प्रति वफादार हैं। देशपांडे ने कहा कि भाजपा कार्यकर्ताओं में भी सब कुछ ठीक नहीं है और यह देखना होगा कि क्या वे अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी और शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के उम्मीदवारों के लिए पूरे दिल से काम करते या नहीं है। उन्होंने कहा, “ राजनीतिक दलों में फूट कोई नई बात नहीं है। लेकिन विभाजन के बाद पहली बार विद्रोहियों ने मूल दलों पर कब्ज़ा कर लिया और उन्हें मान्यता मिल गई।”
केंद्रीय एजेंसियों के इस्तेमाल का आरोप
पूर्व पत्रकार और अब उद्धव ठाकरे के करीबी सहयोगी हर्षल प्रधान ने दावा किया कि ये चुनाव वास्तव में भाजपा और उसके नेतृत्व के अस्तित्व को लेकर है। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा ने विपक्षी दलों को कमजोर करने और डराने-धमकाने के लिए केंद्रीय जांच एजेंसियों का इस्तेमाल किया और इनका तरीका यह है कि विपक्षी नेताओं पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाओ और फिर उन्हें पार्टी में शामिल कराओ। एनसीपी (एसपी) के प्रवक्ता क्लाइड क्रैस्टो ने भी यही विचार व्यक्त किया। उन्होंने आरोप लगाया, “ यह चुनाव भाजपा के लिए अस्तित्व की लड़ाई है, क्योंकि उन्हें डर है कि वे हार जाएंगे और इसलिए दलों और परिवारों को तोड़ने जैसी घटिया रणनीति का सहारा ले रहे हैं।'' (इनपुट-भाषा)