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सीएम एकनाथ शिंदे ने इस गांव को लिया था गोद, लेकिन सड़क तक नहीं बनी, महिला ने रास्ते में दिया बच्चे को जन्म

महाराष्ट्र के ठाणे के शाहपुर तालुका में सड़क नहीं होने के चलते एक प्रसूता को डोली में बिठाकर अस्पताल ले जाना पड़ा। हालांकि प्रसूता ने रास्ते में ही बच्चे को जन्म दे दिया। इस गांव सीएम शिंदे ने गोद लिया था।

Edited By: Niraj Kumar @nirajkavikumar1
Updated on: October 03, 2023 19:23 IST
प्रसूता को अस्पताल ले जाते ग्रामीण- India TV Hindi
Image Source : इंडिया टीवी प्रसूता को अस्पताल ले जाते ग्रामीण

ठाणे : आजादी के 75 साल बाद भी ठाणे का शाहपुर तालुका विकास से कोसों दूर खड़ा है। इसका एक नजारा उस वक्त देखने को मिला जब एक आदिवासी महिला को प्रसव पीड़ा शुरू होने के बाद 'डोली' यानी कपड़े के स्ट्रेचर में अस्पताल ले जाया गया। क्योंकि गांव से अस्पताल तक जाने के लिए कोई सड़क नहीं है। महिला ने अस्पताल ले जाते वक्त रास्ते में ही बच्चे को जन्म दिया। इस घटना का एक वीडियो सामने आया है। बताया जाता है कि सीएम एकनाथ शिंदे ने इस गांव को लिया था गोद, लेकिन सड़क तक नहीं बन सकी। 

पटिकाचा पाड़ा गांव की घटना

दरअसल यह घटना ठाणे के पटिकाचा पाड़ा गांव का है जहां कि एक महिला को प्रसव पीड़ा के बाद कुछ ग्रामीण ढोली (कपड़े के बने स्ट्रेटचर)में लेकर अस्पताल जा रहे हैं। रास्ते में ही महिला ने बच्चे को जन्म दे दिया। बच्चे को जन्म देने के बाद महिला और बच्चे को एक निजी वाहन से कसारा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) ले जाया गया। एक ग्रामीण ने कहा कि महिला को अपने गांव से निकटतम पीएचसी तक ले जाते समय उन्होंने नदियों और कठिन इलाकों को पार किया। महिला को रास्ते में ही प्रसव पीड़ा शुरू रहो गई। लोगों ने पूरी कोशिश की उसे प्रसव से पहले अस्पताल तक पहुंचा दिया जाए। लेकिन महिला ने रास्ते में ही बच्चे को जन्म दे दिया। 

पिछले कई सालों से सड़क की मांग कर रहे ग्रामीण

बता दें कि इस आदिवासी गांव के सड़क के लिए पिछले कई सालों से मांग की जा रही है। बारिश के दौरान इस गांव की स्थिति और भी खराब हो जाती है। किसी के अचानक बीमार होने या गर्भवती महिलाओं को अस्पताल ले जाने के लिए कपड़ों की ही ढोली का सहारा लेना पड़ता है। शाहपुर तालुका के आदिवासी गांव पटकी पाडा में जाने के लिए सड़क ना होने के कारण मरीजों को इलाज के लिए अस्पताल ले जाने के लिए भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। आदिवासी महिलाओं को ढोली के सहारे अस्पताल ले जाया जा रहा था। उस महिला के साथ गांव की और भी कई सारी आदिवासी महिलाएं मौजूद थी लेकिन रास्ते में ही महिला को अधिक दर्द शुरू हो गया जिसके चलते रास्ते के किनारे ही उस महिला की डिलीवरी कराई गई।

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