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बंबई हाई कोर्ट ने देशमुख मामले में महाराष्ट्र सरकार को दिया दोहरा झटका

महाराष्ट्र सरकार ने कहा कि उसका विरोध जांच के लिए नहीं बल्कि जिस तरह से CBI द्वारा जांच की जा रही है उसे लेकर है।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published : December 15, 2021 21:47 IST
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Image Source : PTI FILE महाराष्ट्र सरकार को बुधवार को बंबई हाई कोर्ट में दोहरा झटका लगा।

Highlights

  • कोर्ट ने अपने फैसले में पूरे अनिल देशमुख-परमबीर प्रकरण के माध्यम से महाराष्ट्र सरकार के आचरण के खिलाफ तीखी टिप्पणियां कीं।
  • कोर्ट ने कहा कि उसे CBI की इस दलील में दम नजर आया कि सरकार की याचिका देशमुख के खिलाफ चल रही जांच को बाधित करने की कोशिश है।
  • महाराष्ट्र सरकार ने कहा कि उसका विरोध जांच के लिए नहीं बल्कि जिस तरह से CBI द्वारा जांच की जा रही है उसे लेकर है।

मुंबई: महाराष्ट्र सरकार को बुधवार को बंबई हाई कोर्ट में दोहरा झटका लगा जिसने पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ भ्रष्टाचार मामले की जांच के लिए SIT के गठन के साथ ही मामले के संबंध में एजेंसी द्वारा जारी सम्मन को रद्द करने के अनुरोध वाली सरकार की याचिकाओं को खारिज कर दिया। राज्य सरकार ने SIT का गठन इस आधार पर करने का अनुरोध किया था कि CBI की जांच निष्पक्ष नहीं है।

इसके अलावा मामले के संबंध में राज्य के पूर्व मुख्य सचिव सीताराम कुंटे और मौजूदा पुलिस महानिदेशक (DGP) संजय पांडे के खिलाफ एजेंसी द्वारा जारी समन को रद्द करने का भी अनुरोध किया था। जस्टिस नितिन जामदार और जस्टिस एसवी कोतवाल की पीठ ने अपने फैसले में पूरे अनिल देशमुख-परमबीर सिंह प्रकरण के माध्यम से महाराष्ट्र सरकार के आचरण के खिलाफ तीखी टिप्पणियां की। पीठ ने यह तक कहा कि उसे केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की इस दलील में दम नजर आया कि राज्य सरकार की याचिका देशमुख के खिलाफ चल रही जांच को बाधित करने की कोशिश है।

हालांकि, महाराष्ट्र सरकार ने कहा कि उसका विरोध जांच के लिए नहीं बल्कि जिस तरह से CBI द्वारा जांच की जा रही है उसे लेकर है लेकिन हाई कोर्ट ने दलील को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। पीठ ने कहा कि जब सिंह ने पहली बार देशमुख द्वारा कदाचार का मुद्दा उठाया था तब राज्य सरकार ने कोई जांच शुरू नहीं की थी। अदालत ने कहा कि जब वकील जयश्री पाटिल ने देशमुख और सिंह दोनों के खिलाफ मुंबई के मालाबार हिल पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई तो राज्य सरकार ने प्राथमिकी तक दर्ज नहीं की।

यह पाटिल की शिकायत पर था कि हाई कोर्ट की एक अन्य पीठ ने CBI को देशमुख के खिलाफ प्रारंभिक जांच करने का निर्देश दिया था, जिन्हें प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने गिरफ्तार किया और वह वर्तमान में न्यायिक हिरासत में हैं। हाई कोर्ट ने कहा, ‘निष्कर्ष के रूप में, हमें प्रतिवादी सीबीआई के आरोप में दम लगा है कि यह याचिका और कुछ नहीं बल्कि जांच को रोकने के लिए याचिकाकर्ता (महाराष्ट्र राज्य) का नया तरीका है।’

हाई कोर्ट ने कहा, ‘इस प्राथमिकी के संबंध में याचिकाकर्ता ने जिस तरीके से खुद को पेश किया है और जिस तरह से याचिका दायर की गई है, उसे देखते हुए, हम संतुष्ट नहीं हैं कि प्रतिवादी CBI से जांच वापस लेने के लिए याचिकाकर्ता का आवेदन जरा भी वास्तविक है।’ हालांकि, अदालत ने कहा कि राज्य सरकार के आचरण पर उसकी टिप्पणियां सामान्य रूप से नहीं बल्कि वर्तमान मामले में मुकदमेबाजी करने वाले पक्ष के रूप में थीं।

पीठ ने राज्य के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि वर्तमान CBI निदेशक सुबोध जायसवाल को केंद्रीय एजेंसी की जारी जांच का नेतृत्व नहीं करना चाहिए क्योंकि वह देशमुख के गृह मंत्री रहने के समय महाराष्ट्र के DGP थे। हाई कोर्ट ने कहा कि जायसवाल के बारे में महाराष्ट्र सरकार की आशंका ‘उचित नहीं है, बल्कि केवल रची गई है।’ पीठ ने राज्य के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि कुंटे और पांडे को CBI ने उत्पीड़न की रणनीति के तहत तलब किया था।

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