बुद्ध जयंती पर नागपुर के डॉक्टर बाबा साहब आंबेडकर स्मारक समिति की ओर से दीक्षाभूमि में चार दिवसीय बुद्ध महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। समिति के अध्यक्ष भदंत आर्य नागार्जुन सुरेई ससाई ने 100 बच्चों को श्रामणेर की दीक्षा दिलाई। विभिन्न रस्मों के बाद सभी ने जीवनभर गौतम बुद्ध के बताए रास्ते पर चलने का संकल्प लिया। इस अवसर पर बच्चों के पालक भी उपस्थित थे। दीक्षा भूमि के प्रांगण में छोटे बच्चे सिर के बाल निकालकर परिजनों सहित उपस्थित हुए। चीवर धारण करने के बाद त्रिशरण सहित दसशील भदंत ससाई से ग्रहण किए। बच्चों ने जीवनभर दसशील का पालन करने के दीक्षा ली। इस दौरान बच्चों का नामकरण भी किया गया।
क्या होती है श्रामणेर शिक्षा
जो बच्चे श्रामणेर शिक्षा लेते हैं वो इस आध्यात्मिक शिक्षा को ग्रहण करने के साथ ही स्कूल की शिक्षा भी पूरी करते हैं। ये अनुयायी महाविहार में कक्षा 4-12वीं तक की पढ़ाई करते हैं। बुद्धमहाविहार मॉनेस्ट्री जो देश के अलग अलग भागों में हैं वहां के प्रमुख बौद्ध भिक्षुओं से उन्हें श्रामणेर का मार्गदर्शन प्राप्त होता है। यहां पढ़ाई को पूरी करने के बाद अनुयायी बच्चे बौद्ध धर्म की उच्च शिक्षा के लिए श्रीलंका एवं थाइलैंड में स्थित बौद्ध महाविहार जाते हैं।
जानकारी के मुताबिक बौद्ध धम्म में दो विभाग हैं। पहला बौद्ध भिक्षु व दूसरा है बौद्ध उपासक। बौद्ध भिक्षु बनने के लिए उपसम्पदा लेनी पड़ती है। कोई भी आदमी एक दिन में बौद्ध भिक्षु नहीं बन जाता है। बौद्ध भिक्षु बनने के लिए उसे पहले तीन महीने श्रामणेर बनके भिक्षु द्वारा तय नियमों को बताया जाता है। इसके बाद उन्हें बौद्ध भिक्षु घोषित किया जाता है। उपासक बनाने के लिए कोई अलग से प्रावधान नहीं है। सामान्य आदमी जब किसी भिक्षु से प्रवचन सुनता है और बौद्ध उपासक बनने की इच्छा प्रकट करता है तो उसके त्रिसरण और पंचशील ग्रहण करना पड़ता है। उसके बाद वो बौद्ध उपासक बन जाता है।