
बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक निजी बैंक के वरिष्ठ अधिकारी को राहत देते हुए कहा कि महिला सहकर्मी के बालों पर टिप्पणी करना और उसके बारे में गाना गाना अपने आप में कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न नहीं है। जज संदीप मार्ने ने 18 मार्च के अपने आदेश में कहा कि यदि याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोपों को सही मान भी लिया जाए तो भी उससे यौन उत्पीड़न के बारे में कोई ‘ठोस निष्कर्ष’ नहीं निकाला जा सकता है।
अपील को किया गया था खारिज
पुणे में एक बैंक के एसोसिएट क्षेत्रीय प्रबंधक विनोद कछावे ने औद्योगिक अदालत द्वारा जुलाई 2024 में दिए उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें बैंक की आंतरिक शिकायत समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के खिलाफ उनकी अपील को खारिज कर दिया गया था। इस रिपोर्ट में उन्हें कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के तहत कदाचार का दोषी ठहराया गया था।
बालों का जिक्र करते हुए गाया था गाना
समिति की रिपोर्ट के बाद, कछावे को उप क्षेत्रीय प्रबंधक के पद पर पदावनत (डिमोशन) कर दिया गया। महिला शिकायतकर्ता के अनुसार, याचिकाकर्ता ने उसके बालों पर टिप्पणी की और उसके बालों का जिक्र करते हुए एक गाना भी गाया। शिकायत में कहा गया है कि एक अन्य मामले में उसने कथित तौर पर अन्य महिला सहकर्मियों की मौजूदगी में एक पुरुष सहकर्मी के निजी अंग के बारे में टिप्पणी की थी।
कोर्ट ने औद्योगिक न्यायालय के आदेश को भी किया खारिज
हाई कोर्ट ने कहा कि बैंक की शिकायत समिति ने इस बात पर विचार नहीं किया कि याचिकाकर्ता का कथित आचरण यौन उत्पीड़न है या नहीं। कोर्ट ने कहा, ‘यदि घटना से संबंधित आरोपों को सही मान भी लिया जाए, तो भी यह मानना कठिन हो जाता है कि याचिकाकर्ता ने यौन उत्पीड़न का कोई कृत्य किया है।’’ हाई कोर्ट ने बैंक की सितंबर 2022 की आंतरिक रिपोर्ट के साथ-साथ पुणे औद्योगिक न्यायालय के आदेश को भी खारिज कर दिया। (भाषा के इनपुट के साथ)