मुंबई: शिवसेना (उद्धव गुट) के नेता संजय राउत ने कहा कि शरद पवार ने अजित पवार को अपना नेता नहीं बताया है। शरद पवार एक प्रतिष्ठित नेता और वे राजनीति के भीष्म पितामह हैं। संजय राउत शरद पवार के उस बयान पर प्रतिक्रिया दे रहे थे जिसमें उन्होंने अजित पवार को अपना ही नेता बताया था। शरद पवार के इस बयान के बाद एक बार फिर चाचा-भतीजे के बीच अंदरखाने कुछ तालमेल होने के कयास लगाए जाने लगे थे।
शरद पवार ने अपने बयान में ऐसा नहीं कहा-राउत
संजय राउत ने कहा कि मैंने उनका बयान सुना है। उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी में कोई फूट नहीं पड़ी है। उन्होंने अपने बयान में कहीं ऐसा नहीं कहा है कि अजित पवार मेरा नेता है। हां, ठीक है वे पार्टी के नेता हैं। संजय राउत ने आगे कहा कि शरद पवार साहब इस देश के राजनीति के भीष्म पितामह है महाराष्ट्र और देश में उनके लिए प्रतिष्ठा है। संजय राउत ने कहा कि पवार साहब कोल्हापुर में थे और उन्होंने उन लोगों पर जबर्दस्त हमला किया जो लोग पार्टी छोड़कर चले गए। इस सभा में हजारों लोग जमा हो गए थे।
लड़ने के दो तरीके होते हैं-राउत
संजय राउत ने कहा कि लड़ने के दो तरीके होते हैं। महाराष्ट्र में दो परंपरा है। छत्रपति शिवाजी महाराज की शिवसेना सीधे मैदान में लड़ती है। दूसरा होता है गोरिल्ला युद्ध। हमारे साथ जिसने बेईमानी की हम उनके साथ सीधे मैदान में आकर लड़ रहे हैं। पवार साहब ने गोरिल्ला युद्ध का मार्ग अपनाया है।
शरद पवार ने कल दिया था ये बयान
दरअसल, कल शरद पवार ने बयान दिया था कि अजित पवार हमारे ही नेता हैं, इसमें कोई विवाद नहीं है। इतना ही नहीं उन्होंने ये भी कहा कि एनसीपी में कोई फूट नहीं हुई है। अगर किसी नेता ने अलग भूमिका ली है तो लोकतंत्र में ये उसका अधिकार है। एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार के इस बयान के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में हलचल बढ़ गई थी। पवार के इस बयान से एक दिन पहले ही सुप्रिया सुले ने भी कहा था कि एनसीपी एकजुट है और अजित दादा हमारे ही नेता हैं। दरअसल, जब शरद पवार से सवाल किया गया कि भ्रम इस बात का है कि एक तरफ कहा जा रहा है कि एनसीपी में फूट हो गई है। लेकिन कल (सुप्रिया) ताई ने ऐसा ऐलान किया है कि एनसीपी में फूट नहीं पड़ी है और (अजित) दादा हमारे ही नेता हैं।
"कोई विवाद नहीं, ये उनका अधिकार है"
इस सवाल के जवाब में शरद पवार ने कहा, "हैं ही... इसमें कोई विवाद नहीं है। फूट पड़ना इसका अर्थ क्या होता है? पार्टी में फूट तब होती है, जब देश स्तर पर पार्टी का एक बड़ा वर्ग अलग हो गया हो। आज ऐसी स्थिती यहां नहीं है। मान लीजिए अगर कुछ लोगों ने पार्टी छोड़ दी या कुछ लोगों ने अलग भूमिका ली तो ये लोकतंत्र में उनका अधिकार है। अगर उन्होंने कोई फैसला लिया है, तो 'फूट पड़ गई' ऐसा कहने की कोई वजह नहीं है, ये उनका निर्णय है।