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26 साल पहले यात्री को 6 रुपए ना लौटाना पड़ गया रेलवे क्लर्क को भारी, चली गई सरकारी नौकरी

हाईकोर्ट ने आदेश सुनाते हुए कहा कि हमारे सामने ऐसा कोई सबूत नहीं है, जो यह दर्शाए कि क्लर्क का छह रुपये लौटाने का इरादा था। क्लर्क पर लगे आरोपों को ठोस सबूतों के आधार पर साबित किया गया है।

Written By: Sudhanshu Gaur @SudhanshuGaur24
Published : Aug 17, 2023 9:16 IST, Updated : Aug 17, 2023 14:06 IST
Maharashtra
Image Source : FILE रेलवे टिकट काउंटर

मुंबई: भारत के बाजारों में खुले पैसे ना होने की समस्या अक्सर बनी रहती है। आपको भी इस समस्या का सामना करना पड़ा होगा। मान लीजिए आपने कभी 99 रुपए का सामान ख़रीदा है और दुकानदार को 100 का नोट दिया। लेकिन दुकानदार कहता है कि उसके पास खुल्ले पैसे नहीं हैं। कई बार आप उन्हें छोड़ देते होंगे या कई बार उस एक रुपए का भी कुछ ना कुछ खरीद लेते होंगे। शॉपिंग मॉल में तो अक्सर यही किया जाता है। वहां अगर आप कैश में पेमेंट करते हिं और अगर आपके 2-3 रुपए बचते हैं तो वह आपको टॉफी दे देते हैं। 

आज से 26 साल पहले मुंबई में भी कुछ ऐसा ही हुआ। यहां रेलवे के एक टिकट काटने वाले क्लर्क ने यात्री को छह रुपये नहीं लौटाए। उसे यह 6 रुपए बहुत भारी पड़ गए। 26 साल पुराने इस मामले में दोषी क्लर्क राजेश वर्मा की नौकरी चली गई। वहीं, अब बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी दोषी क्लर्क को किसी भी तरह की राहत देने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि आरोपी ने को उसके बकाया पैसे नहीं लौटाए, यह एक अपराध है और रेलवे ने उसके खिलाफ जो कार्रवाई की है, वह बिलकुल सही है।

जानिए क्या है 6 रुपए का मामला 

देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में 30 अगस्त 1997 को बुकिंग क्लर्क राजेश  वर्मा कुर्ला टर्मिनस जंक्शन मुंबई में कंप्यूटरीकृत करंट बुकिंग कार्यालय में यात्रियों के टिकट बुक कर रहे थे। टिकट लेने वाली लाइन में आरपीएफ का जवान नकली यात्री बनकर लगा हुआ था। आरपीएफ जवान ने उनसे कुर्ला टर्मिनस से आरा तक के लिए टिकट मांगा। कुर्ला टर्मिनस से आरा तक का किराया 214 रुपये था। इस पर नकली यात्री बने आरपीएफ जवान ने उन्हें 500 का नोट दिया। ऐसे में क्लर्क ने 286 लौटाने थे बावजूद इसके उन्होंने केवल 280 रुपये लौटाए। दरअसल विजिलेंस को आरोपी के खिलाफ शिकायत मिल चुकी थी, जिसके बाद उन्होंने यह पूरा जाल बिछाया था।

विजिलेंस टीम ने छापा मारकर बरामद किए रुपए 

इसके बाद विजिलेंस टीम ने बुकिंग क्लर्क राजेश वर्मा के टिकटिंग काउंटर पर छापा भी मारा। जब जांच की गई तो टिकट बिक्री के हिसाब से उनके रेलवे कैश में 58 रुपये कम थे। साथ ही क्लर्क की सीट के पीछे एक अलमारी से 450 रुपये बरामद किए गए। विजिलेंस टीम ने कहा था कि यह राशि यात्रियों से अधिक किराया वसूल करके इकट्ठा की गई थी। आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज किया गया और फरवरी 2002 में उसे दोषी करार देते हुए नौकरी से निकाल दिया गया। 

हाईकोर्ट ने भी आरोपी को राहत देने से किया इनकार 

आरोपी क्लर्क इस आदेश के खिलाफ अपीलीय प्राधिकरण के पास पहुंचे। हालांकि जुलाई 2002 में उनकी अपील को खारिज कर दिया गया। बाद में वर्मा 2002 में इस मामले को लेकर पुनरीक्षण प्राधिकरण (कैट) के पास भी गए, जहां 2003 में उनकी दया याचिका भी खारिज कर दी गई। इसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट का रुख किया। जहां सभी पक्षों को सुनने के बाद सात अगस्त को अदालत ने पुनरीक्षण प्राधिकरण (कैट) के आदेश को बरकरार रखते हुए क्लर्क को राहत से इनकार कर दिया। 

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