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भोपाल में सरकार के इस प्लान से क्यों परेशान हैं महिलाएं? हरियाली बचाने के लिए पेड़ों से चिपकीं

भोपाल में चिपको आंदोलन शुरू हो गया है। यहां हजारों पेड़ों से घिरे शहरी इलाके में मंत्रियों और विधायकों के लिए 3000 करोड़ रुपये की लागत से नए आवास और अपार्टमेंट बनाया जाना प्रस्तावित है। इसके चलते 30 हजार से लेकर 60 हजार तक पेड़ों के काटे जाने की खबर के चलते आक्रोश फैल गया है।

Reported By : Anurag Amitabh Edited By : Malaika Imam Published on: June 13, 2024 16:03 IST
पेड़ों से चिपकीं महिलाएं- India TV Hindi
पेड़ों से चिपकीं महिलाएं

ऐसे में जब ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती जा रही है, जंगलों के काटने और कंक्रीट के जंगल खड़े होने के चलते तापमान शहरों में 50 डिग्री पर पहुंच रहा है, मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में पर्यावरण की संरक्षण और पेड़ों को बचाने के लिए उत्तराखंड की तर्ज पर 'चिपको आंदोलन' शुरू हो गया है। महिलाओं ने पेड़ों से चिपक कर 'चिपको आंदोलन' शुरू किया है। दरअसल, भोपाल में हजारों पेड़ों से घिरे शहरी इलाके में मंत्रियों, विधायकों और अफसरों के लिए 3000 करोड़ रुपये की लागत से नए आवास और अपार्टमेंट बनाया जाना प्रस्तावित है। इसके चलते 30 हजार से लेकर 60 हजार तक 30 से 50 साल पुराने पेड़ों के काटे जाने की खबर है, जिसे लेकर आक्रोश फैला है।

4000 से ज्यादा मकान भी बनेंगे 

सरकार की री-डेवलपमेंट स्कीम के तहत मंत्रियों, विधायकों और अफसरों के जिन मकानों को बनाने की चर्चा चल रही है, वह शिवाजी नगर तुलसी नगर इलाके में बनेंगे। क्षेत्रीय पार्षद गुड्डू चौहान बताते हैं कि यहां पर 1464 और 1250 नाम के मोहल्ले हैं, जो मकान की तादाद के नाम पर बनाए गए थे। इसके अलावा यहां पर बड़ी संख्या में ट्रिपल स्टोरी बिल्डिंग्स भी हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि 20 से 30 हजार पेड़ों की मौजूदगी के बीच 250 एकड़ में 3000 बंगले तोड़े जाएंगे, जहां मंत्रियों, विधायकों और अफसर के 4000 से ज्यादा मकान भी बनेंगे और 1970 के बाद बने ये सारे मकान 30 से 60 साल पुराने हजारों पेड़ों के बीच बने हैं।

पेड़ों से चिपकीं महिलाएं

Image Source : INDIATV
पेड़ों से चिपकीं महिलाएं

मकान टूटेंगे, तो पेड़ भी काटे जाएंगे

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल देश की चुनिंदा और राजधानियों में से मानी जाती है, जो तालाब झीलों और प्राकृतिक संपदा के लिए मशहूर है। प्रस्तावित योजना जिस इलाके में होना बताई जा रही है वह 1970 के दशक में सुनियोजित ढंग से बसाए गए पेड़ों के बीच बने मकानों को तोड़कर ही पूरा की जा सकती है। जाहिर है मकान टूटेंगे, तो पेड़ भी काटे जाएंगे। हालांकि, प्रदेश के मुखिया डॉ. मोहन यादव बताते हैं कि यह योजना आगे नहीं बढ़ी है, पर्यावरण को लेकर सरकार गंभीर है, अव्वल तो पेड़ काटे नहीं जाएंगे और जरूरत पड़ी तो उन्हें शिफ्ट किया जाएगा।

"ये इलाका सबसे ज्यादा ग्रीनरी वाला"

हालांकि, पर्यावरण संरक्षक ने सरकार के पेड़ों को शिफ्ट करने के तर्क को भोपाल में हुए पुराने पेड़ों की शिफ्टिंग के उदाहरण को देते हुए सिरे से खारिज करते नजर आते हैं। राशिद कहते हैं कि ये पेड़ भोपाल के लंग्स हैं, ये इलाका सबसे ज्यादा ग्रीनरी वाला है। पहले भी सरकार ने स्मार्ट सिटी के पेड़ों को कलियासोत इलाके में शिफ्ट किया था, लेकिन एक भी नहीं बचा। इन पेड़ों के काटने से हीट स्मोग बढ़ने से ओजोन पॉल्यूशन बढ़ेगा, जिससे तापमान भी बढ़ेगा।

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