मध्य प्रदेश के इंदौर में ईद का पर्व बड़ी ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। ईद के मौके पर इंदौर में गंगा जमुनी तहजीब देखने को मिलती है। इस साल ईद-उल-फितर से जुड़ी सांप्रदायिक सद्भाव की एक अनूठी परंपरा, जो यहां 35 साल पहले शुरू हुई, इस परंपरा को आज भी जीवित रखा गया है। हर बार की तरह इस साल भी हिंदू परिवार के लोग शहर काजी को बग्गी में बिठाकर ईद की नमाज अदा करने के लिए ईदगाह लेकर पहुंचे हैं। इसका एक वीडियो भी सामने आया है, जिसमें शहर काजी और सलवारिया परिवार के सदस्या साथ ईदगाह जाते दिख रहे हैं।
हिंदू मुस्लिम दंगों के बाद शुरू हुई परंपरा
दरअसल, शहर में हिंदू मुस्लिम दंगों के बाद एकता भाईचारे की ये परंपरा शुरू हुई थी। 1990 से पहले हुए दंगों के बाद ही शहर का सलवारिया परिवार शहर काजी को बग्गी में राजमोहल्ला से बिठाकर ईदगाह सदर बाजार लेकर पहुंचता है और नमाज अदा होने के बाद बग्गी से ही राजमोला घर तक छोड़ा जाता है। यहां एक दूसरे को सिवईया खिलाकर ईद की बधाई दी जाती है। बताया जाता है कि स्वर्गीय रामचंद्र सलवाडिया ने इस परंपरा की शुरुआत की थी।
शहर काजी ने क्या कहा?
वहीं इस मौके पर शहर काजी इरशाद अली ने ईद के मौके पर बताया कि दुनिया दो तरह के चश्मों से देखती है। एक सियासत का चश्मा है जहां हिंदू और मुस्लिम हमेशा लड़ते रहते हैं और दूसरा सलवाडिया परिवार है जहां एकता और भाईचारे के साथ गंगा जमुना की तहजीब बरसती है। शहर काजी मोहम्मद इशरत अली ने बताया, "मेरे पिता मोहम्मद याकूब अली भी शहर काजी थे। वर्ष 1990 में उनके इंतकाल से पहले, ईद के मौके पर सलवाड़िया परिवार उन्हें भी घर से पूरे सम्मान के साथ बग्गी पर बैठाकर ईदगाह ले जाता और वापस छोड़ता था।" शहर काजी ने कहा कि इंदौर के मूल मिजाज में कौमी एकता और भाईचारा है और सलवाड़िया परिवार की परंपरा इसकी खूबसूरत मिसाल पेश करती है।
ईदगाह पहुंचते हैं जनप्रतिनिधि और आलाधिकारी
वहीं बेटे सत्यनारायण सलवाड़िया ने बताया, "वर्ष 2017 में पिता के निधन के बाद यह परंपरा मैं निभा रहा हूं।" बता दें कि ईद उल फितर के मौके पर तमाम जनप्रतिनिधि और आलाधिकारी भी ईदगाह पर पहुंचते हैं। इस दौरान शहर काजी की नमाज अदा करने के बाद एक दूसरे को बधाई देकर ईद का पर्व मनाया जाता है।
(रिपोर्ट- भारत पाटिल)
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