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मध्यप्रदेश में चुनाव से पहले मतदाताओं ने साधी चुप्पी, सियासी दलों की बढ़ी परेशानी

मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है। ऐसे में प्रमुख राजनीतिक दलों की चिंता बढ़ती जा रही है। राजनीतिक दल एक तरफ तो अपनी पार्टी के बागी नेताओं को मनाने में जुटे हुए हैं, तो वहीं दूसरी तरफ उन्हें मतदाताओं के मूड का भी कोई अंदाजा नहीं लग रहा है।

Edited By: Amar Deep
Published : Nov 03, 2023 11:46 IST, Updated : Nov 03, 2023 11:46 IST
प्रतीकात्मक तस्वीर।
Image Source : PTI प्रतीकात्मक तस्वीर।

भोपाल :  मध्य प्रदेश में 17 नवंबर को विधानसभा चुनाव होने हैं। चुनाव में शामिल होने वाले प्रत्याशियों ने अपना नामांकन भी भर दिया है। वहीं अब नामांकन पत्र दाखिल करने का समय भी निकल चुका है। इन सबके बावजूद राजनीतिक दल परेशान हैं। राजनीतिक दलों की परेशानी का एक सबसे बड़ा कारण मतदाताओं की चुप्पी बनी हुई है। दल चाहे भाजपा हो या कांग्रेस, सभी इस बात को लेकर मंथन कर रहे हैं कि इस बार के चुनाव में जनता किसकी तरफ झुकाव कर रही है।

वैसे तो मध्यप्रदेश में कई राजनीतिक हैं जो विधानसभा चुनाव में ताल ठोक रहे हैं। लेकिन मुख्य रूप से देखा जाए तो एक तरफ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी के बीच ही कांटे की टक्कर मानी जा रही है। वहीं इस टक्कर के बीच इन दलों के कई नेता ऐसे भी हैं, जो अपनी पार्टी से नाराज चल रहे हैं। इनमें से कुछ को पार्टियों ने मना लिया है तो कुछ निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। अभी भी 15 से ज्यादा ऐसी विधानसभा सीटें हैं जहां पर बागी नेता मैदान में उतर रहे हैं। हालांकि भाजपा और कांग्रेस दोनों दल अपने-अपने बागी नेताओं की मान-मनौवल में जुटे हुए हैं। 

मान-मनौवल का दौर जारी

इन दलों में ना सिर्फ अपने नेताओं के मान-मनौवल का दौर चल रहा है, बल्कि मतदाताओं के मूड को लेकर भी चिंता बनी हुई है। दोनों दल अभी भी जनता की नब्ज टटोलने का प्रयास कर रहे हैं। इन सबके बावजूद जो जमीनी फीडबैक राजनीतिक दलों के पास आ रहा है वह उन्हें हैरान करने वाला है। मतदाता न तो किसी की आलोचना करने को तैयार हैं और न ही किसी के पक्ष में बोलने को। ऐसे में दोनों ही दल इस भरोसे में हैं कि मतदाता उनके साथ होगा और सत्ता की कुर्सी पर वही काबिज होंगे।

क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक
वहीं राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आमतौर पर नामांकन भरने और वापसी तक मतदाताओं का यही रुख रहता है। हालांकि इस बार मतदाताओं की चुप्पी कहीं ज्यादा है और वह दोनों ही राजनीतिक दलों के घोषणा पत्र, वचन पत्र का अध्ययन करने और उम्मीदवार का आंकलन करने के बाद ही कोई मन नाएंगे। ऐसा अभी तक नजर आ रहा है। उसी के चलते मतदाताओं की चुप्पी और लंबी खींचने की संभावना बनी हुई है। 
(IANS)

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