Highlights
- 16 में से भाजपा 7 नगर निगमों में मेयर का चुनाव नहीं जीत पाई
- सिंगरौली: जहां 'आप' का मेयर बना, वहां भी पार्षदों का बहुमत बीजेपी का
- लोकल बॉडी इलेक्शन से एमपी की राजनीति में 'आप' की एंट्री'
MP Local Body Election 2022: मध्य प्रदेश की सभी 16 नगर निगमों के चुनाव नतीजे अब सामने आ गए। सभी पार्टियों के दावों और वादों को मतदाताओं ने कितनी गंभीरता से लिया, ये इन नतीजों से स्पष्ट हो गया। इस बार चुनाव में बीजेपी को जीत मिली, लेकिन ये जीत भी बहुत से सवाल छोड़ गई। दरअसल पिछले चुनाव यानी 2015 में हुए नगर निकाय चुनाव में भाजपा ने सभी 16 नगर निगमों के मेयर पद जीतकर कांग्रेस समेत सभी पार्टियों को मुकाबले से बाहर कर दिया था। लेकिन, इस बार ऐसा नहीं हुआ! 16 में भाजपा 7 निगमों में मेयर का चुनाव हार गई।
जानिए क्या था कमलनाथ का फैसला, जिसे बदल दिया शिवराज सरकार ने
इस चुनावी हार के कई मायने निकाले जा रहे हैं। लेकिन एक ऐसा नियम जो, पहले शिवराज सरकार ने बनाया था। उसे कमलनाथ सरकार ने सत्ता में आने के बाद पलट दिया। जो नियम पहले बनाया गया था कि प्रदेश में सभी मेयर अब डायरेक्ट जनता द्वारा ही चुने जाएंगे। इस नियम को कमलनाथ सरकार ने बदल दिया था और पार्षदों द्वारा महापौर या मेयर पद के चुनाव किए जाने का वही पारंपरिक नियम वापस कायम कर दिया था। लेकिन जब शिवराज सिंह चौहान ने कमलनाथ सरकार को अपदस्थ करके सत्ता में वापसी की तो उन्होंने फिर यह नियम लागू कर दिया कि मेयर जनता द्वारा सीधे चुना जाएगा। लेकिन कमलनाथ सरकार के नियम को पलटने से शिवराज सरकार का ही नुकसान हुआ। क्योंकि जिन नगर निकायों में बीजेपी के मेयर पद हारे, वहां सबसे ज्यादा बीजेपी के पार्षद जीते। यदि कमलनाथ का नियम शिवराज नहीं बदलते, तो आज 16 में से 15 मेयर बीजेपी के होते।
बीजेपी के हाथ से निकल गए ये नगर निगम
प्रदेश के सभी नगर निगमों में सीधे जनता द्वारा मेयर का चुनाव कराने का शिवराज सरकार का दांव उलटा पड़ गया। जबकि कांग्रेस को इसका लाभ मिला। बीजेपी के हाथ से रीवा, कटनी, मुरैना नगर निगम भी हाथ से निकल गए। जबकि छिंदवाड़ा, ग्वालियर, सिंगरौली व जबलपुर में मेयर का चुनाव वो पहले ही हार गई। इस तरह 16 में से 7 नगर निगम बीजेपी के हाथ से निकल गए। कमलनाथ सरकार महापौर, नगर पालिका नगर परिषद अध्यक्ष के चुनाव को पार्षदों के जरिए कराने का बिल लेकर आई थी। इसका बीजेपी ने विरोध किया था। फिर साल 2020 में सत्ता परिवर्तन के बाद सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कमलनाथ सरकार के फैसले को बदल दिया था। यदि मेयर का चुनाव पार्षदों के जरिए होता तो बीजेपी को पूरा फायदा मिलता।
सिंगरौली: जहां 'आप' का मेयर बना, वहां भी पार्षदों का बहुमत बीजेपी का
जिस सिंगरौली में पहली बार आम आदमी पार्टी का प्रत्याशी मेयर बना है, वहां भी पार्षदों का बहुमत बीजेपी का ही सबसे ज्यादा है। वहीं कटनी में निर्दलीय यानी बीजेपी से बागी उम्मीदवार मेयर बना है। लेकिन पार्षद बीजेपी के जीते हैं। वहीं कटनी में 45 पार्षद सीटों में से बीजेपी के 27, कांग्रेस के 15 व 3 अन्य को जीत मिली। ऐसे में यह स्पष्ट है कि बीजेपी यदि कमलनाथ वाले फॉर्मूले से चुनाव लड़ती तो यहां भी अपना किला बचाए रखने में सफल होती।
लोकल बॉडी इलेक्शन से एमपी की राजनीति में 'आप' की एंट्री': एक्सपर्ट की राय
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक और पत्रकार हेमंत पाल कहते हैं कि सरसरी नजर से देखा जाए, तो इस नगर निकाय चुनाव में सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा को हुआ! कांग्रेस को इस चुनाव में मिली जीत से ऑक्सीजन मिली और ‘आप’ ने मध्यप्रदेश की राजनीति में अपने आने का इशारा कर दिया। ‘आप’ ने सिंगरौली में महापौर की सीट जीतकर एक तरह से प्रदेश में अपने राजनीतिक प्रवेश का डंका बजा दिया। महापौर के अलावा ‘आप’ के कई पार्षद भी प्रदेश में जीते हैं। चौंकाने बात यह भी रही कि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ‘ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन’ (एआईएमआईएम) को मुस्लिम वर्ग में समर्थन मिला है।
एमपी नगर निकाय चुनाव: 4 खास बातें
- मध्य प्रदेश में ‘आप’ के 41 पार्षद भी जीते हैं। कटनी नगर निगम के महापौर पद पर भाजपा की बागी उम्मीदवार की जीत भी किसी चमत्कार से कम नहीं कही जा सकती। प्रदेश की 40 नगर पालिकाओं में से भाजपा 20 पर जीती, कांग्रेस ने 12 नगर पालिकाओं पर कब्ज़ा जमाया, जबकि 8 पर निर्दलीयों ने जीतकर सारे समीकरण बिगाड़ दिए।
- बुरहानपुर में कांग्रेस की महापौर उम्मीदवार शहनाज इस्माइल आलम की मात्र 388 वोट से हार का सबसे बड़ा कारण ही ओवैसी की पार्टी का उम्मीदवार रहा, जिसने 10,332 वोट लेकर कांग्रेस के समीकरण बिगाड़ दिए।
- बुरहानपुर और जबलपुर में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के कुछ पार्षद भी चुनाव जीते। इसे मुस्लिमों के कांग्रेस से भंग के रूप में समझा जा सकता है। खरगोन में भी ओवैसी की पार्टी के 3 पार्षद जीते हैं।
- अभी तक मध्यप्रदेश में किसी तीसरी पार्टी का उदय नहीं हुआ था। बीएसपी और एसपी ने कोशिश जरूर की, पर लगता है ‘आप’ ने संकेत दे दिया वे लंबी रेस के लिए तैयार हैं।