मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर क्राइम ब्रांच के पास राऊ इलाके में रहने वाले डॉक्टर दंपति ने शिकायत दर्ज कराई है। डॉक्टर दंपति ने शिकायत में बताया कि सीबीआई मुंबई स्काइप आईडी से उन्हें वीडियो कॉल आई और ठगों ने उनसे 53 घंटे तक बात की और डिजिटल हाउस अरेस्ट में रखा। डॉक्टर दंपति ने बताया कि उनसे साइबर ठगों ने 8 लाख 50 हजार का ट्रांजैक्शन करवाकर ठगी को अंजाम दिया।
कैसे हुई साइबर ठगी
दरअसल, इंदौर क्राइम ब्रांच में डिजिटल हाउस अरेस्टिंग ठगी का एक मामला सामने आया है, जहां राऊ इलाके में रहने वाले एक डॉक्टर दंपति को रविवार 7 अप्रैल दोपहर को एक मुंबई के नंबर से कॉल आया। कॉल पर डाक्टर दंपति को बताया कि थाईलैंड में फाइनेंस इंटरनेशनल करियर सर्विस जो पार्सल आपके द्वारा भेजा गया था, उसमें एमडीएम ड्रग्स मौजूद है और कई महत्वपूर्ण दस्तावेज भी मिले हैं, जिसमें ह्यूमन ट्रैफिकिंग, छोटे बच्चों के ऑर्गन तस्करी जैसे गंभीर अपराधों में आपको फंसाया जा रहा है।
इसलिए आपको सीबीआई मुंबई ऑफिस आना होगा। इसपर दंपति के मुंबई जाने से मना करने पर उन्हें बताया गया कि वीडियो कॉल पर उनके बयान दर्ज किए जाएंगे। ठगों ने कहा कि सीबीआई मुंबई से आपके पास वीडियो कॉल आएगा। इसके बाद डॉक्टर दंपति को स्काइप आईडी से एक वीडियो कॉल आया जहां पर वर्दी में मौजूद एक सीबीआई ऑफिसर और अन्य ऑफिसर वीडियो कॉल पर दिख रहे थे। उनके द्वारा 53 घंटे तक डिजिटल हाउस अरेस्ट रखकर डॉक्टर दंपति को अलग-अलग गंभीर धाराओं में फंसाने को लेकर डराया गया।
वहीं कई तरह के टैक्स और चार्ज के नाम पर पैसों की मांग की गई। इसके बाद साइबर ठग यही नहीं रुके, बल्कि आरबीआई से भी इन्वेस्टिगेशन के नाम पर एक अलग से वीडियो कॉल आया। इससे घबराए डॉक्टर दंपति ने 8 लाख 50 हजार रूपये साइबर ठगों के खातों में ट्रांसफर कर दिए। इसके बाद साइबर ठगों द्वारा डॉक्टर दंपति से और पैसों की मांग की गई थी। डॉक्टर दंपति ने आखिरकार जब अपने मित्रों से जानकारी ली तो पता चला उन्हें ठगी का शिकार बनाया जा रहा है। इसके बाद डॉक्टर दंपति ने पुलिस को पूरी घटना की जानकारी दी।
क्या होता है डिजिटल अरेस्ट?
कानूनी तौर पर डिजिटल अरेस्ट नाम का कोई शब्द नहीं है। यह एक फ्रॉड करने का तरीका है,जो साइबर ठग अपनाते हैं। इसका सीधा मतलब होता है ब्लैकमेलिंग, जिसके जरिए ठग अपने टारगेट को ब्लैकमेल करता है। डिजिटल अरेस्ट में कोई आपको वीडियो कॉलिंग के जरिए घर में बंधक बना लेता है। वह आप पर हर वक्त नजर रख रहा होता है। डिजिटल अरेस्ट के मामलों में ठग कोई सरकारी एजेंसी के अफसर या पुलिस अफसर बनकर आपको वीडियो कॉल करते हैं।
इसके बाद ठग आपको कहते हैं कि आपका आधार कार्ड सिम कार्ड या बैंक अकाउंट का इस्तेमाल किसी गैरकानूनी गतिविधि के लिए हुआ। वह आपको फर्जी गिरफ्तारी का डर दिखाकर घर में ही कैद कर देते हैं। इसके बाद वह झूठे आरोप लगाते हैं और जमानत की बातें कह कर पैसे ऐंठ लेते हैं। अपराधी इस दौरान आपको वीडियो कॉल से हटने भी नहीं देते हैं और ना ही किसी को कॉल करने देते हैं। डिजिटल अरेस्ट के इस तरह के कई मामले सामने आ चुके हैं।
साइबर ठगों को ट्रेस करना बहुत कठिन
हजारों किलोमीटर दूर बैठकर साइबर ठग आपको अपना शिकार बना लेते हैं। स्काइप आईडी, वीचैट और उन वीडियो कॉलिंग से आपसे संपर्क करते हैं ऐसे में पुलिस को 3 से 6 महीने तो आरोपियों का डाटा, यूआरएल जानकारी लेने के लिए समय लग जाता है। अधिकतर एप्लीकेशन्स के सर्वर विदेश में हैं, जहां से जानकारी जुटाने में पुलिस को कड़ी मशक्कत करना पड़ती है और कई महीनों तक जानकारी नहीं मिल पाती।
(रिपोर्टर- भारत पाटिल)
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