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इंदौर में वक्फ बोर्ड की हार, 6.7 एकड़ बेशकीमती जमीन पर नगर निगम को मिली बड़ी जीत

इंदौर में कर्बला मैदान की इस विवादित जमीन को लेकर 1979 से चल रही कानूनी लड़ाई चल रही थी। मुस्लिम समुदाय का दावा था कि इस जमीन पर उसका कब्जा करीब 200 साल से लगातार बना हुआ है।

Edited By: Khushbu Rawal @khushburawal2
Published on: September 17, 2024 23:08 IST
कोर्ट ने वक्फ बोर्ड के...- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO कोर्ट ने वक्फ बोर्ड के खिलाफ सुनाया फैसला

इंदौर में कर्बला मैदान की 6.70 एकड़ जमीन को वक्फ संपत्ति बताये जाने का दावा खारिज करते हुए जिला अदालत ने नगर निगम को इस बेशकीमती भूमि का मालिक घोषित कर दिया है। महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने मंगलवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में अदालत के फैसले की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इस विवादित जमीन को लेकर 1979 से चल रही कानूनी लड़ाई में नगर निगम को ऐतिहासिक जीत हासिल हुई है।

कई सालों से चल रहा केस

भार्गव ने बताया कि कर्बला मैदान पर अवैध कब्जा रोकने को लेकर नगर निगम का दायर मुकदमा एक दीवानी अदालत ने 2019 में खारिज कर दिया था। महापौर ने बताया कि नगर निगम ने इस फैसले को जिला न्यायालय में चुनौती दी और मध्यप्रदेश वक्फ बोर्ड, करबला मैदान समिति एवं मुस्लिम पक्ष के अन्य लोगों को प्रतिवादी बनाया गया। जिला न्यायाधीश नरसिंह बघेल ने नगर निगम की अपील स्वीकार करते हुए 13 सितंबर को पारित फैसले में कहा,‘‘प्रतिवादी गण यह प्रमाणित करने में असफल रहे हैं कि वादग्रस्त संपत्ति एक वक्फ संपत्ति है।’’

नगर निगम कर्बला मैदान की जमीन का मालिक घोषित

अदालत ने होलकर राजवंश के शासनकाल में प्रचलित इंदौर नगर पालिक अधिनियम 1909 और मध्य भारत नगर पालिका अधिनियम 1917 से लेकर होलकर रियासत के भारत संघ में विलय के बाद बने नगर पालिक अधिनियम 1956 के प्रावधानों की रोशनी में नगर निगम को कर्बला मैदान की 6.70 एकड़ जमीन का मालिक घोषित किया। जिला न्यायालय में नगर निगम की ओर से कहा गया कि इन कानूनों में एक जैसा प्रावधान है कि सरकारी और निजी संपत्तियों को छोड़कर शहर की सभी खुली भूमियां नगर निगम की संपत्तियों में निहित हो जाएंगी।

प्रतिवादियों ने अदालत में कहा कि पूर्ववर्ती होलकर शासकों ने कर्बला मैदान की जमीन मोहर्रम पर ताजिये ठंडे करने के लिए आरक्षित कर दी थी जहां मस्जिद भी बनी हुई है। मुस्लिम समुदाय का दावा था कि इस जमीन पर उसका कब्जा करीब 200 साल से लगातार बना हुआ है। हालांकि, अदालत अपने फैसले में तथ्यों पर गौर करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंची कि पिछले 150 साल से इस जमीन के एक हिस्से का उपयोग ताजिए ठंडे करने के धार्मिक कार्य के लिए होता आ रहा है। (भाषा इनपुट्स के साथ)

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