Monday, November 18, 2024
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यहां पानी बना जी का जंजाल, जंगली और पहाड़ी रास्तों से जाकर बुझाते हैं कंठ की प्यास- VIDEO

अनूपपुर जिले के चौरादादर गांव के लोग रोजाना सुबह होते ही अपने घर से दो से तीन किमी दूर दूसरे गांव में जंगली और पहाड़ी रास्तों से होकर पानी के लिए पहुचते हैं। अपने सूखे कंठो की प्यास बुझाने के लिए रोजाना इसी दिनचर्या से जूझते हैं।

Edited By: Malaika Imam @MalaikaImam1
Updated on: January 25, 2024 22:52 IST
पानी के लिए पहाड़ी और जंगली रास्ते से जाते लोग- India TV Hindi
पानी के लिए पहाड़ी और जंगली रास्ते से जाते लोग

भले ही आज हमारा देश अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, लेकिन मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले के इस गांव में आज भी लोग पानी जैसी मूलभूत सुविधा के लिए इस भरी ठंड में संघर्ष कर रहे हैं। अब इसे हम अपने जनप्रतिनिधियों का अधूरा प्रयास कहे या अफसरशाही का लचीलापन कि 6 महीने पूर्व पानी के लिए किया बोर, पर "न" अक्ल के घोड़े दौड़े, "न" पानी चढ़ा पहाड़ वाली कहावत चरितार्थ होती दिख रही है। जिले के पीएचई विभाग की नाकामी ग्रामीणों की परेशानी बन गई है और सरकार की तमाम योजनाओं के बाद भी व्यवस्था दम तोड़ रही है। ग्रामीण पानी के परेशान हो रहे हैं।

जल जीवन मिशन भी यहां पर टेके घुटने 

मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले के पुष्पराजगढ़ जनपद अंतर्गत पड़री पंचायत के चौरादादर गांव के लोग कैसे रोजाना सुबह होते ही अपने घर से दो या तीन किमी दूर दूसरे गांव में जंगली, पहाड़ी रास्तों से होकर पानी के लिए पहुचते हैं और अपने सूखे कंठों की प्यास बुझाने के लिए रोजाना इसी दिनचर्या से जूझते हैं। ये तस्वीरें इनकी कहानी अपने आप बयां कर रही हैं। आप भी देखिए इन तस्वीरों में कि कैसे ग्रामीण लाइन लगाकर पानी के लिए जा रहे हैं और अपनी भाषा में कह रहे हैं- पानी बनिस जियू के जंजाल... यानी पानी उनके लिए जी का जंजाल बन गया है। ये तस्वीर उसी अनूपपुर जिले की है, जहां पिछले कई सालों से प्रदेश सरकार में इसी किले से मंत्री रहे, और तो और शहडोल लोकसभा की सांसद भी इसी जिले से आती हैं और इस बार भी इस जिले से प्रदेश सरकार में एक मंत्री बनाए गए हैं, लेकिन अनूपपुर जिले की विधानसभा क्षेत्र पुष्पराजगढ़ अंतर्गत पड़री पंचायत के चौरादादर गांव जो पहाड़ी क्षेत्र में बसा हुआ है, यहां के लोग आजादी के 76 वर्ष बाद या यूं कहें कि सदियों से पीने के पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। चौरादादर गांव में लगभग 45 घर के लोग निवासरत हैं। लगभग 300 की आबादी वाले इस गांव में शासन प्रशासन की योजना दम तोड़ती नजर आ रही है। 

न अक्ल के घोड़े दौड़े, न पानी चढ़ा पहाड़

दरअसल, इस गांव के ग्रामीणों ने बताया कि यह समस्या आज की नहीं है। कई पीढ़ी से हम ऐसे ही जंगली रास्तों का सफर तय कर रोजाना सुबह से पानी के लिए बकान गांव में आते और इन जंगली पथरीले रास्तों से होकर पानी ले जाते हैं। हालांकि, पीएचई विभाग ने बकान गांव में एक बोर कराया था और अधिकारियों द्वारा कहा जा रहा था कि पहाड़ में चढ़ाकर वहां की जनता को पानी पहुंचाएंगे, लेकिन 6 महीने से ऊपर बीत गए बोर ऐसे का ऐसे ही पड़ा हुआ है "न अक्ल के घोड़े दौड़े न पानी चढ़ा पहाड़।" 

यहां के हैंडपंप पानी की जगह उगल रहे हवा

पीएचई विभाग ने पूर्व में 2 से 3 हैंडपंप खनन करवाए हैं, पर वो किसी काम के नहीं हैं। अब ऐसे में सवाल विभाग पर भी उठ रहा है कि क्या इस गांव में बोर कराने से पहले विभाग ने सर्वे नहीं कराया या महज कागजी सर्वे कराकर दिखावे के लिए हैंडपंप खनन कराकर लगा दिया गया, जिससे ग्रामीणों की प्यास तो नहीं बुझ पा रही है, पर अधिकारियों ने वाहवाही लूट ली। वहीं, पीएचई एसडीओ ने माना स्थिति बहुत खराब है। पीएचई विभाग के प्रभारी एसडीओ दीपक साहू से जब इस मामले पर फोन पर चर्चा हुई, तो उन्होंने कहा वाकई वहां की स्थित बहुत खराब है। चौरादादर में ऊपर पानी नहीं है, नीचे बकान गांव में एक नया बोर करवाकर लिफ्ट के जरिए पहाड़ के ऊपर पानी पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। जल्द ही समस्या का हल कर दिया जाएगा। बहरहाल, ग्रामीणों की परेशानी साफ दिखाई पड़ रही है। इस मामले पर सब अलग-अलग सफाई दे रहे हैं। देखने वाली बात तो यह होगी कि इस गांव के लिए शासन-प्रशासन कौन सा स्थाई कदम उठता है और कब तक, जिससे ग्रामीणों के लिए पानी की समस्या का समाधान हो सके। फिलहाल वर्तमान की स्थित बदहाल ही नजर आ रही है।

- विशाल खण्डेलवाल की रिपोर्ट        

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