भोपाल: मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जिले के जरिए राजनीतिक जमीन की जंग जीतने की तैयारी कर ली है। बीते 6 महीनों में दो नए जिले बनाने की घोषणा के बाद सीएम शिवराज ने कमलनाथ का गढ़ कहे जाने वाले छिंदवाड़ा जिले के पांढुर्णा को भी नया जिला बनाने की घोषणा कर दी है। 24 मार्च को तालियां बजाते जनप्रतिनिधियों के बीच सीएम शिवराज ने हाथों में कागज लिए रीवा जिले के मऊगंज को नया जिला बनाने की घोषणा की थी और कहा था कि जैसे एग्जाम की तैयारी होती है, वैसे ही हमने तैयारी कर रखी है।
इसके बाद 20 जुलाई को उज्जैन के नागदा में सीएम ने घोषणा की कि जनता की सहूलियत के लिए दो तहसीलों को मिलाकर नया जिला बनाने जा रहे हैं। लेकिन शिवराज सिंह चौहान की इसी तीसरी घोषणा ने मध्य प्रदेश की राजनीति को गर्मा दिया है।
छिंदवाड़ा की सातों विधानसभा सीटों पर कांग्रेस का कब्जा
दरअसल, गुरुवार को छिंदवाड़ा में शिवराज सिंह ने पांढुर्णा को मध्य प्रदेश का 55वां जिला बनाने की घोषणा की। छिंदवाड़ा को बीते 40 सालों से कमलनाथ का गढ़ कहा जाता है। यहां की सातों विधानसभा सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है। ऐसे में कांग्रेस को नए जिले बनाने की शिवराज की घोषणा गढ़ में सेंध दिखाई देती है।
पांढुर्णा जिले में सौसर तहसील और नंदनवाड़ी तहसील भी शामिल होगी। इस जिले में पांढुर्णा के अलावा सौसर विधानसभा सीट भी है यानी कांग्रेस के कब्जे वाली इन दोनों सीटों पर शिवराज सिंह चौहान ने जिला बनाकर बड़ा दांव खेला है। 29 लोकसभा सीटों वाले मध्य प्रदेश में छिंदवाड़ा से कांग्रेस के अकेले सांसद कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ आते हैं। हालांकि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष इसे जनता की मांग के तहत बनाया गया नया जिला मान रहे हैं।
कमलनाथ ने क्या कहा?
चुनावी साल में शिवराज सिंह चौहान ने छिंदवाड़ा के पांढुर्णा के अलावा दो और नए जिले बनाने की घोषणा की है। जुलाई में बनाए गए नए जिले नागदा विधानसभा सीट पर भी कांग्रेस का कब्जा है। वहीं, मार्च में बनाए गए मऊगंज जिले की दोनों विधानसभा सीटों मऊगंज और देवतालाब पर भाजपा काबिज है। हालांकि पांढुर्णा को नया जिला बनाने को घोषणा के बाद भी कमलनाथ बेफिक्र नजर आ रहे है। वह कह रहे हैं कि दस सालों से घोषणा कर रहे हैं लेकिन महज 10 महीनों पहले नगरपालिका चुनाव भी भाजपा हारी है।
चुनावी साल में बड़ी घोषणा
बता दें कि नए जिले इसलिए बनाए जाते हैं क्योंकि दूर दराज के गांव के लोगों को कामों के लिए 50 से 100 किलोमीटर दूर जिला मुख्यालय आना पड़ता है ऐसे में नए जिले लोगों की जरूरतों को पूरा करते हैं। लेकिन चुनावी साल में अगर बरसों से चली आ रही जिला बनाने की मांग को पूरा किया जाए तो राजनीतिक तौर पर इसे जिला पॉलिटिक्स के तौर पर ही देखा जाएगा।
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