20वीं शताब्दी में चेचक और हैजे की जो बीमारी फैली थी। उसके टीके का आविष्कार भारत में हुआ था। यह खुलासा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव ने किया है। दरअसल, डॉक्टर मोहन यादव मंगलवार को भोपाल के कुशाभाऊ ठाकरे इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर में स्वच्छता ही सेवा पखवाड़ा की शुरुआत करने पहुंचे थे। इसी मंच से उन्होंने ये बात कही है।
कैसे हुआ टीके का अविष्कार?
इस दौरान उन्होंने कहा, '20वीं शताब्दी में चेचक और हैजे की जो बीमारी फैली थी। उस बीमारी से आम तौर पर शीतला माता का जो समय है, वो एक जैसा ही है। आधुनिक साइंस की दृष्टि से यह जो टीका चला है। उसका आविष्कार कैसे हुआ? यह बताना चाहूंगा।'
फोड़े की मवाद और बबूल का कांटा
सीएम मोहन यादव ने कहा, 'चेचक की बीमारी से बचने की यह प्राचीन विद्या हमारी थी। जब अंग्रेज यहां पर शासन कर रहे थे। चेचक की बीमारी दुनियाभर में फैली तो कोई को बचाव के साधन नहीं मिल रहे थे। लेकिन बचाव के साधन हमारे यहां उस समय ध्यान में आया कि चेचक से जिसको मवाद का कोई फोड़ा हुआ। उसका मवाद निकालकर, बबूल के कांटे से किसी दूसरे को एंटीबॉडी तैयार करने के लिए हमारे वैद्य लगाते थे। इसे लगाने से कुछ समय बाद दो-तीन दिन बुखार आता था। धीरे धीरे उसकी बॉडी में ऑब्जर्व हो जाता था। बाद में उसको चेचक नहीं होता था।'
अंग्रेंजों ने इस विधि को लंदन भेजा
डॉक्टर मोहन यादव ने आगे बोलते हुए कहा, 'इसी विधि को तत्कालीन लॉर्ड मैकाले इन लोगों ने अपना कर लंदन भेजा। बाकायदा पत्र के साथ विधि को लंदन भेजा गया। काल के प्रभाव में वह तकनीक बदलकर आज टीका ईजाद हुई। असली में वह टीका तो भारत का था। स्वच्छता से बचने के लिए यह हमारी प्राचीन परंपरा रही है।'