मध्य प्रदेश में चुनाव तो अगले साल दिसंबर में है लेकिन उसकी पूरी स्क्रिप्ट अभी से तैयार की जा रही है। मध्य प्रदेश का चुनाव इसलिए अहम है क्योंकि उसके कुछ महीने बाद देश में आम चुनाव भी होने है और सूबे में किसी भी पार्टी की जीत 2024 की राह आसान बना देगी। राज्य में सभी दलों की नजर 21 फीसदी की आबादी वाले आदिवासी वोटर्स पर है क्योंकि यहां सत्ता की चाबी इन्हीं वोटर्स के पास है। 230 विधानसभा वाले मध्य प्रदेश में 84 विधानसभा सीट आदिवासी प्रभाव वाले हैं और 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व है।
2018 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी इन सीटों पर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई थी जिसके कारण वो सत्ता के करीब पहुंचकर भी सत्ता से दूर रह गई थी। बीजेपी को 84 सीटों में मात्र 34 सीटों से ही संतुष्ट करना पड़ा था। वहीं 47 रिजर्व सीटों में कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 30 सीटों पर कब्जा जमाकर मध्यप्रदेश की सत्ता हासिल की थी। दोनों प्रमुख दल अपने-अपने तरीके से आदिवासी वोटर्स को लुभाने में लगे हुए हैं।
सबसे पहले सत्ताधारी दल बीजेपी की बात करें तो बीजेपी किसी भी कीमत पर अपने पिछले प्रदर्शन में सुधार करना चाहती है। केंद्र से लेकर प्रदेश नेतृत्व आदिवासियों वोटर्स के लिए अपना पूरा दमखम लगा रही है। आने वाले 15 नवंबर को बिरसा मुंडा की जयंती पर बीजेपी भोपाल में एक बड़ा कार्यक्रम करने वाली है जिसमें खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल होने वाले हैं। उस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष को छोड़कर सिर्फ आदिवासी नेता ही प्रधानमंत्री के साथ मंच साझा करेंगे। जनजाति क्षेत्रों में बीजेपी की रथ यात्रा भी होने वाली है।
अगस्त महीने में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह मध्यप्रदेश के तीन दिवसीय दौरे पर गए थे और आदिवासी नेताओं से मुलाकात की थी। चुनाव विश्लेषकों की मानें तो द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाना आदिवासी वोटर्स को साधने की कोशिश है। वहीं, कांग्रेस पार्टी की बात करें तो कांग्रेस पिछले चुनाव में आदिवासी दलों के सहारे सत्ता में पहुंची थी और एकबार फिर से उसी समर्थन की की उम्मीद है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा मध्यप्रदेश में भी होने वाली है और उस यात्रा में आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र फोकस में होंगे। यात्रा के बीच राहुल गांधी आदिवासी महानायक टंट्या मामा की प्रतिमा पर माल्यार्पण भी करेंगे।
वहीं हाल ही में कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ आदिवासी क्षेत्र शहडोल में विशाल जनसभा को संबोधित किया और आदिवासियों को साधने की कोशिश की। जयस नेता हीरालाल के सहारे कांग्रेस 2018 में सत्ता में आई थी लेकिन आगामी चुनावों में हीरालाल के अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा ने कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।
आखिर में कहें तो बीजेपी और कांग्रेस को इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि आदिवासी वोट उनके साथ आसानी से आ जायेंगे क्योंकि इस बार आदिवासियों के तमाम छोटे बड़े दल कांग्रेस और भाजपा का खेल बिगाड़ने के लिए तैयार हैं।
डिसक्लेमर: ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं