Friday, November 22, 2024
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बीजेपी ने मध्य प्रदेश में सरकार तो बना ली, लेकिन अब इन लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार तलाशने में होगा सिरदर्द

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने सात सांसदों को मैदान में उतारा था। जिसमें पांच तो चुनाव जीते लेकिन दो हार गए। अब पार्टी को इन सात सीटों पर नए चेहरे की तलाश शुरू कर दी है।

Edited By: Sudhanshu Gaur @SudhanshuGaur24
Published on: January 07, 2024 19:48 IST
Madhya Pradesh, BJP- India TV Hindi
Image Source : FILE बीजेपी

भोपाल: मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत मिलने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने अब लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। मिशन 29 पर काम शुरू हो गया है तो वही पार्टी के सामने उन सात सीटों पर उम्मीदवारी का सवाल बना हुआ है जहां के सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतरा गया था। राज्य में लोकसभा की 29 सीट है और वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 28 सीटों पर जीत दर्ज की थी, कांग्रेस सिर्फ छिंदवाड़ा में जीत हासिल कर सकी थी जहां से सांसद नकुलनाथ है। अब भाजपा छिंदवाड़ा पर भी नजर गड़ाए हुए है। सभी 29 सीटों पर जीतने के लिए मिशन-29 बनाया है।

बीजेपी ने सात सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतारा था

बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में अपनी रणनीति के मुताबिक तीन तत्कालीन केंद्रीय मंत्रियों सहित कुल सात सांसदों को मैदान में उतारा था। इनमें से पांच तो जीत गए हैं लेकिन दो को हार का सामना करना पड़ा। अब बीजेपी के सामने चुनौती है नए चेहरों की तलाश की। जो सांसद से विधायक बन गए हैं उनके स्थान पर तो नए चेहरे चाहिए ही होंगे, मगर क्या उन्हें भी मौका दिया जाएगा जो विधानसभा तक का चुनाव हार गए।

पांच लोकसभा सांसदों ने जीता चुनाव 

बीजेपी ने जिन तत्कालीन सांसदों को मैदान में उतारा था उनके संसदीय क्षेत्र पर गौर करें तो नरेंद्र सिंह तोमर मुरैना से सांसद थे और यह इलाका क्षत्रिय बाहुल्य माना जाता है, तो वही प्रह्लाद पटेल को नरसिंहपुर से चुनाव लड़ाया गया और वह दमोह से सांसद रहे हैं, दमोह में ओबीसी मतदाता बड़ी तादाद में है। जबलपुर के सांसद रहे राकेश सिंह का संसदीय क्षेत्र सामान्य वर्ग की बहुलता वाला है। रीति पाठक के संसदीय क्षेत्र सीधी में ब्राह्मण वर्ग प्रभावकारी है। इसी तरह उदय प्रताप सिंह का संसदीय क्षेत्र होशंगाबाद भी सामान्य वर्ग के प्रभाव का है।

दो सांसदों को मिली विधानसभा चुनाव में हार 

वहीं दो सांसद सतना से गणेश सिंह और मंडला से केंद्रीय मंत्री भगत सिंह कुलस्ते को हार का सामना करना पड़ा है। सतना की बात करें तो यह ओबीसी वर्ग के प्रभाव वाला संसदीय क्षेत्र है और मंडला आदिवासी वर्ग का है। पार्टी के अंदर एक सवाल उठ रहा है क्या इन विधानसभा हारने वाले सांसदों को मैदान में उतर जाए और अगर मौका दिया जाता है तो जनता के बीच क्या संदेश जाएगा। ऐसे में सतना में ओबीसी वर्ग और मंडला में आदिवासी वर्ग से जुड़े कार्यकर्ताओं की क्षमता का पार्टी आकलन कर रही है। पार्टी प्रदेश के विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में हारे उम्मीदवारों से लेकर अन्य की बैठक भी कर चुकी है।

दो लोकसभा सीटें पार्टी के लिए बनी सिरदर्द 

राजनीतिक विश्लेषकों को मानना है कि जिन स्थानों पर तत्कालीन सांसद चुनाव जीत गए हैं और विधायक बन गए हैं उन स्थानों पर पार्टी के लिए प्रत्याशी की खोज तो करनी ही होगी, मगर जिन स्थानों पर पार्टी हारी है वहां भी उसे चेहरे बदलने पर जोर लगाना होगा। सतना और मंडला वे संसदीय क्षेत्र हैं जहां पार्टी को कारगर रणनीति तो बनानी ही होगी। सतना में ओबीसी और मंडला में आदिवासी वर्ग का बेहतर उम्मीदवार तलाशना होगा।

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