दुनिया की सबसे भीषण मानवीय त्रासदी 1984 में आज के दिन यानी 3 दिसंबर को भोपाल में हुई थी। तबाही का वो ऐसा मंजर था जिसमें सड़कों पर लाशें बिछी हुई थीं। हजारों लोग जो रात को सोए वो सुबह नहीं देख पाए। सर्द रात में 1 बजे तक तो सबकुछ ठीक था। पर देर रात जब जहरीली गैस का रिसाव हुआ तो लोगों को आंखों में जलन, सीने में घुटन हुई तो घबराकर बाहर निकले और जान बचाने के लिए दौड़ पड़े। केमिकल फैक्टरी से जहरीली गैस के रिसाव ने देखते ही देखते हजारों लोगों को जिंदगी को लील लिया। जहरीली गैस का प्रभाव केवल कुछ दिन नहीं, बल्कि अगली पीढ़ियों ने भी भुगता है। सबसे दुखद बात ये है कि हादसे के जिम्मेदार आरोपी को कभी सजा नहीं हो पाई।
नींद में ही हमेशा के लिए सोए रह गए हजारों लोग
2 और 3 दिसंबर 1984 की दरमियानी रात को केमिकल फैक्टरी से 45 टन जहरीली गैस रिसी, जिसका नाम था 'मिथाइल आइसोसाइनाइट'। यह कंपनी अमेरिकी फर्म यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन की भारतीय सहायक कंपनी थी।पुराने भोपाल की घनी आबादी वाले इलाके में फैली यह हवा हजारों लोगों को हमेशा की नींद सुला गई। दहशत के मारे लोग जिंदगी बचाने के लिए बदहवास होकर अपने बच्चे को गोदी में लिए, परिवार की महिलाओं के साथ सड़कों पर भागने का प्रयास कर रहे थे। कई तो सड़क पर ही गिर गए और फिर कभी नहीं उठे। हजारों लोग भोपााल से बाहर निकलने की कोशिश में थे।
कुछ लोगों को जब जहरीली गैस सूंघने में आई तो गंध से फौरन समझ गए कि यह केमिकल फैक्टरी से रिसी जहरीली गैस है। लेकिन हजारों लोगों को यही नहीं पता था कि कोई गैस रिसी है, आंखों में तेज जलन, घुटन से बाहर निकल पड़े थे।
जहरीली गैस से गईं 16 हजार जानें , 5 लाख से ज्यादा लोगों को सांस की बीमारी
मरने वालों की गिनती 16 हजार से भी अधिक थी। करीब पांच लाख जीवित बचे लोगों को जहरीली गैस के संपर्क में आने के कारण सांस की समस्या, आंखों में जलन या अंधापन और अन्य विकृतियों का सामना करना पड़ा। जांच में पता चला कि कम कर्मचारियों वाले संयंत्र में घटिया संचालन और सुरक्षा प्रक्रियाओं की कमी ने तबाही मचाई थी।
स्थानीय लोगों को था जहरीली गैस फैलने के खतरे का अंदेशा
अमेरिकी फर्म की इस कैमिकल फैक्टरी जहरीली गैस रिस सकती है, इस बात का इल्म स्थानीय लोगों को था। इस फैक्टरी को लेकर सवाल भी उठे थे। वरिष्ठ पत्रकार राकेश बादल की मानें तो 1984 से पहले भी इसी फैक्टरी से जहरीली गैस रिसने की इक्का दुक्का घटनाएं हुई थीं। भोपाल के पास ही बैरसिया बस्ती के लोग बताते हैं कि सैकड़ों पालतू मवेशी भी इस फैक्टरी की अपशिष्ट सामग्री नाले में मिलाने के कारण मारे गए। 24 दिसंबर 1981 को तीन मजदूरों की जहरीली गैस रिसने से हुई थी मौत। कारखाने के प्रबंधकों ने घटना को छिपाने का प्रयास किया था। फिर 9 फरवरी 1982 को दोबारा जहरीली गैस फैली। काम करने वाले 24 मजदूर इसकी चपेट में आए थे। तीसरी बार अक्टूबर 1982 को फिर जहरीली गैस रिसी और सात कर्मचारी गंभीर घायल हो गए थे, जिन्हें अस्पताल ले जाया गया।
सरकारी आंकड़ों में इतनी मौतें बताई, कई साल तक जारी रहा मौतों का सिलसिला
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जहरीली गैस के लीकेज के कुछ घंटों के अंदर करीब 3 हजार लोगों की जानें चली गई थी। हालांकि उस समय भोपाल में मौजूद रहे लोगों का ये कहना है कि मृतकों की संख्या 15 हजार से ज्यादा थी। मौतों का सिलसिला हादसे के कई साल बाद तक जारी रहा।
पीड़ितों को मिला 470 मिलियन डॉलर का मुआवजा
इस गैस कांड के बाद यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन ने 470 मिलियन अमेरिकी डॉलर का मुआवजा दिया। हालांकि, पीड़ितों ने ज्यादा मुआवजे की मांग के साथ न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। तब भोपाल की एक अदालत ने कंपनी के 7 अधिकारियों को हादसे सिलसिले में 2 साल की सजा सुनाई। उस वक्त UCC के अध्यक्ष वॉरेन एंडरसन मामले के मुख्य आरोपी थे, लेकिन मुकदमे के लिए पेश नहीं हुए।
हजारों लोगों की मौत के जिम्मेदार एंडरसन को नहीं मिल पाई सजा
भोपाल की कोर्ट ने फैक्टरी के मालिक एंडरसन को फरार घोषित कर दिया था, ये दिन था 1 फरवरी 1992 का। इसके बाद कोर्ट ने एंडरसन के खिलाफ 1992 और 2009 में दो बार गैर-जमानती वारंट भी जारी किया, लेकिन ये बड़ी विडंबना है कि उसकी गिरफ्तारी नहीं हो सकी। सितंबर, 2014 में एंडरसन की स्वाभाविक मौत हो गई और उसे कभी इस मामले में सजा नहीं भुगतनी पड़ी।