मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले की अमरवाड़ा विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी को जीत मिली है। यह उपचुनाव वैसे तो राज्य के एक विधानसभा क्षेत्र का था, लेकिन इसके सियासी मायने बहुत बड़े हैं। राज्य की सियासत में छिंदवाड़ा को कांग्रेस और कमलनाथ के गढ़ के तौर पर पहचाना जाता रहा है। यहां बीते लगभग 45 साल में दो बार ही ऐसे मौके आए हैं, जब कमलनाथ परिवार के सदस्य को शिकस्त मिली है। यही वजह है कि छिंदवाड़ा को कमलनाथ का गढ़ माना जाने लगा। वक्त गुजरने के साथ यहां अब कमलनाथ और उनके समर्थकों की पकड़ न केवल कमजोर हुई है, बल्कि बीजेपी यहां खुद को स्थापित करने में कामयाब भी होती नजर आ रही है।
अभी हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में कमलनाथ के पुत्र नकुल नाथ को बीजेपी उम्मीदवार विवेक बंटी साहू ने शिकस्त दी और अब अमरवाड़ा के विधानसभा उपचुनाव में कमलेश शाह ने कांग्रेस के धीरन शाह को पराजित किया। अमरवाड़ा वह विधानसभा क्षेत्र रहा है जहां कमलेश शाह कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर तीन बार जीते थे। अब वह कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो चुके हैं।
14 चुनावों में कांग्रेस ने 11 बार जीत दर्ज की
इस विधानसभा क्षेत्र में अब से पहले हुए 14 चुनावों में कांग्रेस ने 11 बार जीत दर्ज की थी। अमरवाड़ा विधानसभा उपचुनाव के नतीजे बीजेपी को उत्साहित करने वाले हैं, क्योंकि बीजेपी बीते 10 साल से कांग्रेस और कमलनाथ के गढ़ छिंदवाड़ा पर कब्जा करने के अभियान में लगी हुई थी। आखिरकार उसे सफलता मिलनी शुरू हो गई है। यह ऐसा संसदीय क्षेत्र है जहां बीते दो विधानसभा चुनावों में सभी सात सीटों पर कांग्रेस जीत दर्ज करती आ रही है। अब यहां भाजपा भी ताकत बनकर खड़ी हो रही है।
कमलनाथ की सियासी हैसियत पर उठने लगे सवाल
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पहले छिंदवाड़ा लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार और अब अमरवाड़ा विधानसभा के उपचुनाव में मिली हार ने यह तो संकेत दे ही दिए हैं कि कमलनाथ की अब सियासी हैसियत वैसी नहीं रही जैसी पहले हुआ करती थी। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां किसी राजनीतिक दल नहीं, बल्कि व्यक्तिगत कमलनाथ का प्रभाव रहा है। लोकसभा और अमरवाड़ा विधानसभा उपचुनाव के नतीजे यह बता रहे हैं कि कमलनाथ का जनाधार धीरे-धीरे खिसकने लगा है। इसकी बड़ी वजह यह भी है कि उनके कई समर्थक कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम चुके हैं। (IANS)
ये भी पढ़ें-