जब उनसे इन कब्रों के बारें में पूछा गया तो बोले कि यह किसकी कब्रें है ये नही पता, लेकिन ये मुस्लिम कब्रें है, लेकिन स्थानीय लोग बताते है कि यह कब्रें 10 वीं सदी के सूफी संतो की है। यहां पास पर ही एक एक दरगाह है।
कुट्टी का कहना है कि यहां पर लोगों को आने में कोई समस्या नहीं हैं। उन्हें एक नया अनुभव मिलता है। यहां सुबह रेस्टोंरेय खुलते ही सबसे पहले सफाई और इन कब्रों के लिए चादर और फूल चढ़ाए जाते है। यह कब्रे लोहे के रॉड से घिरी हुई हैं।
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