कहा जाता है कि पूर्व काल में यहां दूध की धारा सतत प्रवाहित रहती थी, जो ठीक नीचे ब्रह्मा जी के पांचवें सिर पर गिरती थी, अब वर्तमान में जल से ही इस पंचानन का अभिषेक होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ब्रह्मा जी ने कहा है कि पितृ पक्ष से संबंधित श्राद्ध कर्म बद्रीनाथ धाम में, मातृ पक्ष से सम्बन्धित श्राद्ध कर्म पवित्र गया धाम में, भातृ पक्ष वाले कर्म पुष्कर में तथा ननिहाल पक्ष वाले श्री रघुनाथ मंदिर धाम में करना श्रेष्ठकर हंै, लेकिन पाताल भुवनेश्वर में सभी पक्षों से संबंधित श्राद्ध कर्म तथा तर्पण आदि किया जाना चमत्कारिक व फलदायी है। यही वजह है कि यहां छूटे हुए श्राद्ध उठाए भी जाते हैं। अमावस्या के मौके पर तर्पण विशेष महत्व रखता है।
कुछ और आगे जाकर नजर आती है हंस की टेढ़ी गर्दन वाली मूर्ति। ब्रह्मा के इस हंस को शिव ने घायल कर दिया था क्योंकि उसने वहां रखा अमृत कुंड जूठा कर दिया था। यहां ब्रह्मा, विष्णु व महेश की मूर्तियां भी साथ-साथ स्थापित हैं। पर्यटक आश्चर्यचकित होता है जब छत के उपर एक ही छेद से क्रमवार पहले ब्रह्मा फिर विष्णु फिर महेश की इन मूर्तियों पर पानी टपकता रहता है, और फिर यही क्रम दोबारा से शुरू हो जाता है।
चारों युगों के प्रतीक पिंड भी यहां पर स्थित हैं, जबकि कलियुग का पिंड लम्बाई में अधिक है और उसके ठीक ऊपर गुफा से लटका एक पिंड नीचे की ओर लटक रहा है और इनके मध्य की दूरी पुजारी के कथानुसार 7 करोड़ वर्षो में 1 इंच बढ़ती है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक कहा जाता है कि दोनों पिंडो के मिल जाने पर कलियुग समाप्त हो जाएगा।
19वीं सदी में शंकराचार्य द्वारा स्थापित ताम्रपत्र से सुशोभित एक त्रिलिंगी (ब्रहा, विष्णु, शंकर) बना है। जिसमें ऊपर गुफा की छत से जटाओं की तरह बनी हुई संरचनाओं पर से बूंद-बूंद करके टपकते जल से तीनों लिंगों का रुद्राभिषेक होता है। गुफा की शुरुआत पर वापस लौटने पर एक मनोकामना कुंड है। मान्यता है कि इसके बीच बने छेद से धातु की कोई चीज पार करने पर मनोकामना पूरी होती है।
इस तरह इन अद्भुत नजारों का दर्शन करने के बाद वापस भी उसी रास्ते से जाना होता है, जहां से प्रवेश किया गया था। बाहर आने पर महसूस होता है, जैसा कि सच में कुछ देर पहले हम एक दूसरी दुनिया या परलोक में थे।