नई दिल्ली: दुनियाभर में मां के अनेको रुप में विराजित है। जो अपने चमत्कारों क कारण विश्व प्रसिद्ध है। माता दुर्गा को नौ स्वरुपों में पूजा जाता है। इन्हीं में से चौथे रुप में मां कुष्मांडा को पूजा जाता है।
उत्तर प्रदेश के कानपुर से करीब 45 किलोमीटर दूर घाटमपुर कस्बे में मां के चौथे स्वरुप मां कुष्मांडा देवी का मंदिर स्थित है। यहां पर मां की लेटी हुई प्रतिमा है। जो कि एक पिंडी के रुप में है। इस पिंडी से हमेशा पानी रिसता रहता है। माना जाता है कि यहां पर आने पर मां सभी की हर मनोकामना पूर्ण करती है।
माना जाता है कि मां कुष्मांडा की पूजा करने के बाद इन मंदिरों के दर्शन करना चाहिए। इस मंदिर में नवरात्र के समय मेला भी लगता है। जिसके कारण मां के दर्शन के लिए भक्त दूर-दूर से आते है। जानिए कैसा बना ये मंदिर। क्या है इसकी कहानी?
इस मंदिर के निर्माण को लेकर ये बात प्रचलित
इस मंदिर को लेकर दूसरी मान्यता है जो कि मंदिर परिसर के लगी हुई है। इसके अनुसार मां कुष्मांडा की पिंडी की प्राचीनता की गणना करना मुश्किल है। लेकिन पहले घाटमपुर क्षेत्र कभी घनघोर जंगल था। उस दौरान एक कुढाहा नाम का ग्वाला गाय चराने आता था।
उसकी एक गाय चरते चरते इसी स्थान में आकर पिंडी के पास पूरा दूध गिरा देती थी। जब कुढाहा शाम को घर जाता था तो उसकी गाय दूध नहीं देती थी। एक दिन कुढाहा ने गाय का पीछा किया तो उसने सारा माजरा देखा। यह देख उसे बड़ा आश्चर्य हुआ।
वह उस स्थान पर गया और वहां की सफाई की। तो मां कुष्मांड़ा की मूर्ति दिखाई दी। काफी खोदने के बाद मूर्ति का अंत न मिला तो उसने उसी स्थान पर चबूतरा बनवा दिया। और लोग उस जगह को कुड़हा देवी नाम से कहने लगे। पिंडी से निकलने वाले पानी को लोग माता का प्रसाद मानकर पीने लगे। एक दिन किसी के सपने में मां ने आकर कहा कि मै कुष्मांडा हूं। जिसके कारण उनका नाम कुड़हा और कुष्मांडा दोनो नाम से जाना जाने लगा।
इस राजा ने कराया मंदिर का निर्माण
इस मंदिर को मां कुष्मांडा आदि शक्ति के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर के निर्माण और घाटमपुर बसाने के बारें में बताया गया है कि सन 1783 में कवि उम्मेदराव खरे द्वारा लिखित एक फारसी पुस्तक के अनुसार सन् 1380 में राजा घाटमदेव ने यहां पर मां के दर्शन किएं। और अपने नाम से घाटनपुर कस्बे का निर्माण किया। पुन: इस मंदिर का निर्माण सन् 1890 में स्व. श्री चंदीदीन न करवाया बाद में हां रहने वाले बंजारों से मठ की स्थापना की।
मान्यता है कि इस मंदिर में सबसे मन से कोई भी मुराद पूर्ण हो जाती है। बड़ी से बड़ी यहां आने से पूर्ण हो जाती है। साथ ही मान्यता है कि जिन लोगों की मुराद पूर्ण हो जाती है। वह मां के दरबार में आकर भंडारा कराते है और एक ईट की नींव भी रखते है।