धर्म डेस्क: इस बार स्वतंत्रता दिवस के साथ ही नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाएगा। सनातन पंरपरा में नागों की पूजा का बहुत अधिक महत्व है। मान्याओं के अनुसार इस दिन नागों की पूजा की जाती है। साथ ही दूध चढ़ाया जाता है। श्रावण मास की शुक्ल की पचंमी तिथि को नाग पंचमी मनाई जाती है। इस बार नाग पंचमी में दुर्लभ संयोग है। जो कि 38 सालों बाद पड़ रहा है।
इस बार नाग पंचमी के दिन सर्वार्थसिद्ध योग और रवि योग बन रहा है। जो कि बहुत ही शुभ माना जा रहा है। इस दिन मंदिरों में काफी भीड़ होती है लेकिन हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारें में बता रहे है। जो कि सिर्प नाग पंचमी के दिन ही खुलता है। जिसमें दर्शन के लिए अधिक मात्रा में श्रृद्धालु आते है। यह मंदिर है बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर के ऊपरी तल में स्थापित नाग चन्द्रदेव का मंदिर। यद मंदिर उज्जैन में स्थित है। (Nag Panchami 2018: 38 साल बाद नाग पंचमी में दुर्लभ संयोग, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि)
इस दुर्लभ मंदिर के पट सिर्फ श्रावण शुक्ल पंचमी के ही दिन खुलते है। इस मंदिर में भगवान शिव, माता पार्वती एवं उनके पुत्र गणेशजी और नाग इस सिंहासन पर आसीन है। माना जाता है कि विश्व में ऐसा मंदिर और कही नही है। इस मंदिर की अपनी ही एक पौराणिक कथा है। जानिए इस मंदिर की पौराणिक कथा और इसकी प्रसिद्धि के बारें में। (Independence Day 2018: इतनी आसान नहीं थी भारत की आजादी, जानिए स्वतंत्रता आंदोलन की पूरी कहानी और महत्व )
पौराणिक कथा
इस मंदिर के बारें में मान्यता है कि सर्पो के राजा तक्षक ने भगवान भोलेनाथ की यहां पर घनघोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से भगवान शिव नें प्रसन्न होकर तक्षक को अमरत्व का वरदान दिया। इसके बाद से माना जाता है कि तक्षक नाग इसी मंदिर में विराजित है। वह भगवान शिव के गलें हाथ-पैर में एक नाग के रुप में लिपटे हुए है। जिस पर शिव और उनका परिवार आसीन है। एकादशमुखी नाग सिंहासन पर बैठे भगवान शिव के हाथ-पांव और गले में सर्प लिपटे हुए है।
इस मंदिर में जाने से होती है हर मनोकामना पूर्ण
नागचन्द्र देव मंदिर के दर्शनों के लिए नागपंचमी के दिन सुबह से ही लोगों की लम्बी कतारे लग जाती है| मान्यता है कि इस मंदिर में स्थापित भगवान भोलेनाथ को अर्पित फूल व बिल्वपत्र को लांघने से मनुष्य को दोष लगता है, लेकिन भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन करने से यह दोष मिट जाता है| पंचक्रोशी यात्री भी नारियल की भेंट चढ़ाकर भगवान से बल प्राप्त करते हैं और यात्रा पूरी होने पर मिट्टी के बनें घोडें यहां चढ़ाते है।